६६ समाजवाद : पूँजीवाद श्रम का समान विभाजन हो तो दस आदमियों की वस्ती की अपेक्षा सौ आदमियों की बस्ती कहीं अधिक अच्छी दशा में रह सकती हैं। यही नियम करोड़ों को आधुनिक बस्तियों पर भी लागू होता है । किन्तु यदि उनकी हालत अच्छी नहीं है तो इसका कारण यह है कि श्रालसी लोग और उनके आश्रित उपयोगी श्रम करने वालों को लूटते रहते हैं। ____किन्तु इससे यह न समझना चाहिए कि समान प्राय होने की दशा में हरएक व्यक्ति की सम्पत्ति सदा बढ़ती ही रहेगी, क्योंकि योग्य परिस्थितियां मिलने पर मानव-प्राणी अपनी संख्या बड़ी जल्दी बढ़ा लेते हैं। यदि पाने वाली पीढ़ियां अपना काम इस तरह से करें कि युद्ध, प्लेग और अकाल मृत्यु का सामना न करना पड़े तो केवल ४०० वर्षों के भीतर ही केवल एक ही दम्पति की दो करोड़ प्रजा जीवित मिल सकती है। इस समय जितने दम्पत्ति जीवित हैं यदि वे इस क्रम से पढ़ें तो निस्सन्देह शीघ्र ही पृथ्वी पर अन्न पैदा करने के खेत तो क्या खड़े रहने तक के लिए स्थान भी न मिलेगा। पृथ्वी से एक सीमा तक ही खाद्य-सामग्री पैदा की जा सकती है। यदि जनसंख्या की वृद्धि की कोई सीमा न हो तो अन्त में हम को विदित हो जायगा कि अधिक प्राणी 'पैदा करके हम भोजन के अपने हिस्से को बढ़ाने के बजाय घटा रहे हैं। इससे यह परिणाम निकला कि किसी-न-किसी दिन हमको यह तय करना पड़ेगा कि पृथ्वी पर ठीक तरह से अधिक-से-अधिक इतने मनुष्य रह सकते हैं। किन्तु वच्चे पैदा करने में स्त्रियों को गर्भ धारण, प्रसव-वेदना, मृत्युभय और अस्थायी असमर्थता का सामना करना होता है और पुरुष को अपनी मर्यादित ग्रामदनी का, इसीलिए लोग अपने कुटुम्बों को सीमित रखते हैं। यह दूसरी वात है कि वे उन्हें सीमित रखना न जानते हों या अप्राकृतिक साधनों द्वारा सन्तति-नियमन को धर्म-विरुद्ध समझते हों। जब हम सन्तानोत्पत्ति और बच्चों के पालन-पोपण के विषय में ख़याल करते है तो हमें मालूम होता है कि समान श्रआय में वच्चों का भार मॉ-बापों पर नहीं डाला जा सकेगा । यदि हम डालेंगे तो परिणाम
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समाजवाद : पूँजीवाद