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समाजवाद : पूँजीवाद

समाजवाद : पूँजीवाद वाला आलसी धनिक है अर्थात् उसका निर्वाह किसानों और कम्पनियों के कारखानों में काम करने वाले मजदूरों के श्रम से होता है तो वह, उसके नौकर तथा अन्य कारबारी लोग स्वाश्रयी, स्वावलम्बी नहीं होते। उनके रहने के लिए दुनिया श्राज से दस गुनी बड़ी बना दी जाय तो भो वे स्वावलम्बी नहीं होंगे ! इस तरह श्राज की दुनिया में बहुत अधिक आदमी होने के बजाय बहुत अधिक आलसी हैं और बहुत सारे काम करने वाले इन आलसियों की हाज़िरी में रहते हैं। यदि इन श्रालसियों और काम करने वालों को उपयोगी कामों पर लगा दिया जाय तो हमें यह श्रावाज़ बहुत समय तक सुनाई न देगी कि दुनिया में श्राबादी बहुत वढ़ गई है। सम्भव है कि वह फिर सुनाई भी न दे। इसी बात को इस तरह भी समझाया जा सकता है । कल्पना कीजिए २० श्रादमी हैं जिनमें से हरएक अपने श्रम द्वारा १०० गिनी सालाना पैदा करता है और स्वेच्छा से या कानून से विवश होकर १० अपने जमींदार को देना स्वीकार कर लेता है। इस प्रकार मालिक को काम के लिए नहीं, जमीन का मालिक होने के कारण १००० गिनी सालाना की आय होगी। इसमें से ५०० वह अपने पर खर्च कर सकता है जिससे वह उन वीस श्रादमियों में से किसी की भी अपेक्षा बीस गुना धनी हो जायगा । शेष ५०० गिन्नी में ६ आदमियों और १ लड़के को ७५ गिन्नी सालाना पर नौकर रख सकता है जो उसकी हाजिरी बजाएं और जब कभी उन वीस आदमियों में से कोई बग़ावत करने का प्रयत्न करे और ५० गिन्नियाँ न दे तो उसको दबाने के लिए हथियारवन्द टुकड़ी का काम भी दें। ये ६ आदमी ५० गिनी आय वाले आदमियों को पक्ष नहीं लेंगे। कारण, उन्हें ७५ गिनियां मिलती हैं। उनमें इतनो बुद्धि भी नहीं होती कि वे सब मिलकर मालिक को उखाड़ फैं और कुछ उपयोगी काम करें जिससे कि उनमें से हरएक १०० गिन्नियाँ पैदा कर सके। ___ यदि हम २० श्रमिकों और ६-७ नौकरों को लाखों से गुणा करें तो हम को हरएक देश की वर्तमान व्यवस्था की मूल योजना मालूम हो