समान श्राय की आपत्तियां इंग्लैंएट में मई महीने का उत्सव होता है तो एक युवा दम्पति का जो अत्यन्त धनी समाज में रहता है ना नौकरों के बिना काम नहीं चलता, चाहे उनके एक भी यचा न हुथा हो । फिर भी वहाँ हरएक श्रादमी जानता है कि जिन अभागे युवकों को नौ नौकरों के रहने का प्रबन्ध करना पड़ता है और उनके बीच शान्ति कायम रखनी होती है, उनकी अपेक्षा एक नौकर रखने वाले या अधिक-से-अधिक दो नौकर रखने वाले अधिक सेवा-शुश्रूषा पाने हैं और अपने घरों में अधिक श्राराम से रहते हैं। कारण, धनी समाज में रहने वाले युवक के नौकर अपने मालिक का काम करने के बजाय अधिकतर एक-दूसरे का काम करते रहते हैं, इसमें कोई मन्देह नहीं। यदि लोकरीति के खयाल से वहाँ किसी के लिए मानतामा और चपरासी धावश्यक हो ही तो स्मै उनके भोजन पकाने और बिस्तर करने के लिए भी किसी को रखना पड़ेगा। घर की मालिकिन को मेवा की जिननी जरूरत होती है उननी ही प्रधान नौकरानियों और परिचारिकानों को भी, क्योंकि वे अपने काम के अलावा और किसी काम को हाय न लगाने का बहुत अधिक खयाल रखती हैं। इसलिए यह कहना गलत है कि घर में दो बादमियों का काम करने के लिए नौ श्रादमियों का होना हास्यास्पद है। वास्तव में घर में ग्यारह श्रादमियों का काम होता है । और वह सब ना श्रादमियों को श्रापस में करना पड़ता है। यही कारण है कि वे लोग नौ नौकर होने पर भी बराबर शिकायत करते रहते हैं कि उनमे उनका काम नहीं चलता ! वे अल्प समय के लिए और नौकर, फुटकर काम करने वाले दर्जी और खबर ले जाने वाले लड़के बढ़ाते रहते हैं । यहाँ तक कि माधारण मंग्या और असाधारण आय वाले कुटम्बों के यहाँ तीस-तीस नौकर इकट्ठे हो जाते हैं; किन्तु वे सब कम या अधिक एक-दूसरे का काम करते रहते हैं, फलतः नौकरों की सदा कमी यनी रहती है ! यह स्पष्ट है कि ये अँड-के-मुंड नौकर अपना निर्वाह स्वयं नहीं करते। उनका मालिक उनका निर्वाह करता है और यदि वह मालगुजारी और कम्पनियों में लगी हुई अपनी पूंजी के हिस्सों के मुनाफ़ॉ पर गुज़र करने
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