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समान श्राय की आपत्तियां

समान धाय की आपत्तियां लाइ-प्यार ने विगाड़ दिया हो और जो उनके लिए १ लाख रुपया वार्षिक छोड़ गये हों। संकुचित विचार और नीच चरित्र के लोग श्रोछे श्रादमी कहलायेंगे, न कि वे गरीब जिन्हें जीवन में एक भी अवसर नहीं मिलता है। यह सच है कि ऐसे लोग हैं जो काम करते हुए हर नण नाक-भौं सिकोडते रहते हैं, किन्तु इस कारण उन्हें अपने हिस्से के काम से मुक्त नहीं किया जा सकता । जो श्रादमी अपने हिस्से से क्या काम कम काम करता है और फिर भी श्रम द्वारा उत्पन की प्रेरणा सम्पत्ति का अपना पूरा हिस्सा लेता है, वह चोर है। मिलेगी? उसके साथ भी वही व्यवहार होना चाहिम जो अन्य किसी प्रकार के चोरों के साथ होता है। किन्नु कोई गोबर-गणेश कह सकता है कि मुझे काम से घृणा है। मैं कम लेने को तैयार हूं और दरिद्र, गन्दा, चिपडेल और नहा तक रह लूंगा, थोडा काम लेकर मेरा पिड छोड दो! दिनु ऐसा नहीं होने दिया जा सकेगा, क्योंकि सामाजिक दृष्टि से म्वेच्छापूर्वक स्वीकार की गई दरिद्रता उतनी ही हानिकारक है जितनी बाहर से लादी गई दरिद्रता । अधिक काम-समान श्राय में समान श्रम ही अभीष्ठ है, इसलिए यह सोचना तो व्यर्थ है कि जब एक को दूसरे से अधिक नहीं पाने दिया जायगा तो उसको अधिक श्रम करने की प्रेरणा न मिलेगी। किन्तु जिनको काम किए बिना चैन न पड़ता हो यदि वे श्रात्म-तुष्टि के लिए अतिरिक्त काम चाहें तो उन्हें फिर यह दोंग नहीं करना चाहिए कि यह उनके लिए अधिक कष्टकर है, इसलिए इसके लिए उन्हें पैसा देना चाहिए । यह होना चाहिए कि वे अपनी अतिरिक्त शक्ति का अपनी रुचि के कामों में उपयोग करें। सर्वश्रेष्ठ काम-प्रथम श्रेणी के कार्यकर्ताओं से यथाशक्ति सर्वश्रेष्ठ काम करवाने के लिए किसी या प्रेरणा को आवश्यकता नहीं होती। उनकी कठिनाई यह है कि वे उसके द्वारा क्वचित ही भाजीविका पैदा कर पाते हैं। दूसरे नम्बर के काम के लिये तितना पैसा मिल सकता है,