२६ समाजवाद : पूंजीवाद श्रद्धालुता से अनुचित लाभ उठाकर, रुपया कमाने के अतिरिक्त अपने जीवन में और कुछ नहीं किया । एक आदमी है जो खराब चीज़ चैच कर या खरीदी हुई चीज़ों पर दूना-तिगुना मुनाफ़ा लेकर या मूठे विज्ञापनों के प्रचार के लिए बेहदा पत्र और पशिकाओं को रुपया दे कर धूर्तता से तीस-चालीस लाख रुपये का मालिक बन बँटा है। ऐसे श्रादमी का श्रादर- सम्मान किया जाता है, उसे पार्लमेण्ट में भेजा जाता है और लाई बना दिया जाता है। दूसरी ओर ऐसे श्रादमी हैं जिन्होंने मानव-ज्ञान की वृद्धि के लिए या मानव-हित के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ शक्तियों का उपयोग किया है या अपने जीवन तक को खतरे में डाल दिया है। किन्तु उनके पैसों और उपयुक्त धनवानों के रुपयों की तुलना कर उनका महत्व कम किया जाता है । यह कितना पुरा है। जहाँ अार्थिक समानता हो वहीं योग्यता का अन्तर सप्ट हो सकता है । यदि पदवियाँ, यादर-सम्मान और रयाति रुपये रा खरीदी जा सकें तो उनसे लाभ के बजाय हानि ही अधिक होगी। इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया ने कहा था कि जिसके पास पदवी धारण करने जितना रुपया न होगा उसे पदवी नहीं दी जा सकेगी। किन्तु इसका फल यह हुश्रा कि पदवियाँ सर्वश्रेष्ठ लोगों को नहीं, धनिको ही को मिली । एक हजार रुपया सालाना पाने वाले मनुष्य को केवल सौ रुपया पाने वाले व्यक्ति की अपेक्षा अनिवार्यतः प्राधान्य मिल जाता है चाहे वह उससे कितना ही हीन क्यों न हो। समान श्राय वाले व्यक्तियों में योग्यता के भेद के अतिरिक्त और कोई भेद नहीं होता। वहां रुपये का कोई मूल्य नहीं होता, चरित्र, आचरण और क्षमता ही सबकुछ माने जाते हैं । सय मजदूरों को मजदूरी के निम्न परिमाणों पर लाने और सब धनिकों को श्राय के शौकीनी परिमाणों पर ले जाने के बजाय समान प्राय की पद्धति में हरएक अपने को स्वाभाविक सम सतह पर स्थित पायगा। उस समय महान व्यक्ति और ओछे श्रादमी सभी होंगे, किन्तु महान व्यक्ति वे ही होंगे जो बड़े काम करेंगे। वे मूर्ख नहीं जिनको माता-पिताथों के श्रावश्यकता से अधिक
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समाजवाद पूंजीवाद