पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/६१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४
समाजवाद : पूँजीवाद


इतना ही कह देना चाहिए कि वह अपने चारों ओर देख ले, उसे समान वेतन पाने वाले ऐसे लाखों आदमी मिलेंगे जो जीवनभर उसी अवस्था में रहते हैं, उसमें वैसा कोई परिवर्तन नहीं होता। ग़रीय आदमियों के धनी बनने के उदाहरण बहुत कम होते हैं और, यद्यपि धनी आदमियों के ग़रीब बनने के उदाहरण सामान्य होते हैं, किन्तु वे भी कभी-कभी ही होते हैं। नियम यह है कि एक ही दर्ज और पेशे के मजदूरों को समान वेतन मिलता है और उनकी स्थिति न गिरती है न बढ़ती है। वे एक-दसरे से कितने ही भिन्न क्यों न हों उनमें से एक को दो रुपये और दूसरे को आठ आना इस विश्वास के साथ दिया जा सकता है कि इससे उनकी स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा। हां, यह हो सकता है कि कोई बड़ा भारी धूर्त या बड़ा भारी प्रतिभावान पुरुप दूसरों की अपेक्षा बहुत अधिक धनी या बहुत अधिक दरिद्र होकर हमें आश्चर्य-चकित कर दे। ईसामसीह ने शिकायत की है कि "मैं लोमड़ियों और पत्तियों से भी अधिक ग़रीब हूँ । कारण, उनके रहने के लिए बिल धार घोंसले तो होते हैं, मेरे पास आश्रय पाने के लिए मकान तक नहीं है। नेपोलियन तो सम्राट बन गया ! किन्तु अपनी सामान्य योजना बनाते समय हमें ऐसे असाधारण पुरुषो का उससे अधिक खयाल नहीं करना चाहिए जितना तैयार कपड़ों का बनाने वाला अपनी मूल्य-सूची बनाते समय बहुत लम्बे और बहुत नाटे आदमियों का करता है। हमें विश्वास के साथ इस बात को व्यावहारिक अनुभव द्वारा निर्णीत मान लेना चाहिए कि यदि हम देश के समस्त निवासियों में आय को समान रूप से विभाजित करने में सफल हो जॉय तो जिस प्रकार ढाकियों में अपने समुदाय को भिखमंगों और लखपतियों में बांटने की प्रकृत्ति नहीं है वैसे ही उनमें भी अपने आप को धनिकों और कंगालों में बांटने की ज़रा भी प्रकृत्ति नहीं होगी। नवीनता केवल इतनी सी चाही जाती है कि पोस्टमास्टर को जितना मिलता है उतना ही ढाकियों को भी मिले और पोस्टमास्टरों को और किसी से कम न मिले। यदि हमको मालूम पढ़े कि जैसा पड़ता है कि सब न्यायाधीशों को बराबर वेतन देने और सब जहाजी कप्तानों को