पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/५५

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४८ समाजवाद : पूजीवाद होता । वे तो बच्चे ही पैदा करना नहीं चाहतीं ! होटलों में खाती-पीती हैं या अपने घरों का प्रबन्ध अन्य गृह-प्रबन्धिकाओं से कराती है। रसोईघर और बच्चों के लालनपालन के लिए इतनी ही अनुपयुक्त होती हैं जितने अनुपयुक्त हम इन कार्यों के लिए पुरुषों को समझते हैं। वे अपने अनर्जित धन को भोग-विलास और व्यर्थ के कामों में बुरी तरह खर्च करती हैं। तो इस आलसी वर्ग में सच्चे थालसियों के अलावा वे लोग भी शामिल हैं जो श्रम तो करते हैं, किन्तु उससे कोई उपयोगी चीज़ उत्पन्न नहीं होती। वे कुछ न करने के बजाय कुछ न करने के लिए अपने को योग्य बनाए रखने के लिए सदा कुछ-न-कुछ करते रहते हैं और उससे दुखी भी रहते हैं। इंगलैण्ड में धनिकों ने पार्लमेण्ट और अदालतों की भांति गिों पर भी अपना अधिकार जमा लिया है। वहां पादरी ग्राम्य-स्कूल में प्रायः ईमानदारी और समानता का पाठ नहीं धर्म संस्थाओं, पढ़ाता । वह केवल धनिकों के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखना स्कूलों और सिखाता है और उस श्रद्धा-भक्ति को ही धर्म बताता । अखबारों का है । वह जमीन्दार का मित्र होता है पतन जो न्यायाधीश की भांनि धनिकों की पार्लमेण्ट द्वारा धनिकों के हित में बने कानूनों का पालन कराता है और उन्हीं को न्याय कहता है। परिणाम यह होता है कि ग्रामवासियों का दोनों के प्रति 'प्रादर-भाव शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और वे उन्हें सशंक दृष्टि से देखने लगते हैं । वे भले ही श्रादरपूर्वक उनके लिए टोप छूते और सिर झुकाते रहें, किन्तु वे एक दूसरे के साथ यह कानाफूसी करने से नहीं चूकते कि ज़मीन्दार गरीबों को चूसने और सताने वाला है और पादरी पाखंडी है ! बड़े दिन के अवसर पर उपहार श्रादि देने में जमीन्दार चाहे जितनी उदारता क्यों न दिखावे, किन्तु इसका उन पर कुछ असर नहीं होता। क्रान्तियों के दिनों में ऐसे श्रद्धालु किसान ही जमींदारों की कोठियों और पादरियों के वंगलों को जलाते हैं और मूर्तियों को खंडित करने, रंगीन