समाजवाद : पूँजीवाद तब हमें उसका प्रबन्ध करना चाहिए । हम को क्या दिखाई देता है ? सर्वत्र वालक अधमूस्खे, फटे-टूटे कपड़े पहिने, गन्दे घरों में पड़े हैं। जो रुपया उनको योग्य भोजन, वस्त्र और मकान देने में खर्च होना चाहिए, वही लाखों की तादाद में इत्र की शीशियों, मोतियों की मालाओं, पालतू कुत्तों, मोटर गाड़ियों और हर तरह के व्यर्थ कामों में खर्च होता है । इंग्लैण्ड में एक बहिन के पास केवल एक फटा-टूटा जूता है, सर्दी के मारे उसकी नाक सदा वहती रहती है, उसको पौंछने के लिए एक रूमाल का चिथड़ा भी उसके पास नहीं है। दूसरी के पास चालीसों जूते-जोड़ियां और दर्जनों रूमाल है । एक ओर एक छोटा भाई है जो पैसे के चनों पर गुज़र करता है और अधिक के लिए वरावर मांगता रहता है और इस तरह अपनी मां के दिल की तोड़ता रहता है और उसके धैर्य को थका देता है। दूसरी ओर एक मोटा भाई है जो एक बढ़िया होटल में प्रातःकाल के भोजन पर पाँच-छः गिनियां खर्च कर देता है, शाम को रात्रिकत्व में खाता है और डाक्टर की दवा लेता है, कारण, वह बहुत अधिक खाता है ! यह अत्यन्त बुरी अर्थ-व्यवस्था है। नव विचारहीन लोगों से इसका कारण पूछा जाता है तो वे कहते हैं : श्रोह, चालीस जूते-जोडियां रखने वाली महिला और रात्रि-क्लब में शराब पीने वाले श्रादमी को उनके पिता द्वारा रुपया मिला है। यह रुपया उसने रवड़ के सह में कमाया था । और फटे-टूटे जूते वाली लड़की और अपनी मां के हाथों मार खाने वाला उत्पाती लड़का दोनों मजदूर मुहल्ले के केवल कूड़ा- कर्कट मान हैं। यह सही है, किन्तु जो जाति अपने बच्चों के लिए पर्याप्त दूध का प्रबन्ध करने से पहिले ही शेम्पेन शराब पर रुपया खर्च करती है अथवा जब काफी पोपण न मिलने के कारण हज़ारों ही बच्चे काल के ग्रास बन रहे हों, तब भी सिलिहेम, अलसेशियन और पेकिंगी कुत्तों को बढिया बढ़िया भोजन देती है, वह निस्सन्देह अन्यवस्थित, हतबुद्धि, मिथ्याभिमानी, मूर्ख और अज्ञ है । उसका पतन निश्चित है। किन्तु इन सब हानिकारक बेहूदगियों का कारण क्या है ? किसी
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समाजवाद : पूँजीवाद