पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/४०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३३
निर्धनता या धनिकता

निर्धनता या धनिकता ३३ प्रकार हम दूसरी तरह के अपराधियों को रोकते या विवश करते हैं उसी प्रकार उनको भी रोका या विवश किया जा सकता है। किन्तु उनको गरीब रहने देकर हम ऐसी स्थिति उत्पन्न न करें कि अपनी कमियों के वे कारण और सबको नुकसान पहुंचा सकें। ____ अव हम यह मान सकते हैं कि किसी भी दशा में लोगों को गरीव नहीं रहने देना चाहिए, फिर भी हमको इस प्रश्न पर विचार करना होगा कि उन्हें धनी बनने दिया जाय या नहीं। जव दरिद्रता न रहेगी तो क्या हम भोग-विलास और फिजूलखर्ची होने देंगे? इसका उत्तर देना मुश्किल है, कारण भोग-विलास की अपेक्षा दरिद्रता की परिमापा आसानी से की जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति भूखा हो, फटे कपड़े पहिने हो और उसके पास श्रावश्यक सामग्री से युक्त एक भी स्वतन्त्र कमरा न हो जिसमें वह सो सके तो कहना होगा कि स्पष्टतः वह दरिद्रता से पीड़ित है । यदि एक जिले में दूसरे की अपेक्षा वाल-मृत्युयें अधिक होनी हो, लोगों की शौसत थायु प्राचीन धर्म पुस्तकों में वर्णित सौ वर्ष से बहुत कम हो, भले प्रकार लालित-पालित होने वाले बच्चों की अपेक्षा उन बच्चों का औसत वज़न, जो किसी तरह मृत्यु के पास से बच जाते हैं, कम हो तो हम दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि उस जिले के लोग दरिद्रता से पीड़ित हैं। किन्तु धन से होने वाली पीड़ा इतनी आसानी से नहीं नापी जा सकती। जो लोग धनिकों के निकट सम्पर्क में आए हैं उनसे यह बात छिपी नहीं है कि वे भी काफी दुख भोगते हैं। वे इतने अस्वस्थ रहते हैं कि सदा किसी-न-किसी तरह के इलाज के पीछे दौड़ते रहते हैं। वीमार नहीं होते हैं तो भी समझ लेते हैं कि वे बीमार हैं । उनको हजारों तरह की चिन्ताएं घेरे रहती हैं। सम्पत्ति की, नौकरों की, दरिद्र सम्बन्धियों की, कारवार में लगी हुई पूँजी की, सामाजिक मान-मर्यादा कायम रखने की, कई बच्चे हों तो सब के लिए सुखोपभोग के साधन जुटाने की और न जाने किस-किस बात की उन्हें चिन्ता नहीं रहती । वच्चों का सवाल सब से देता है । इंग्लैण्ड में यदि पचास हजार वार्पिक अाय वाले एक धनी के Cm