समाजवाद : पूंजीवाद कितना ही नालायक क्यों न हो यदि गरीबों के संरक्षकों के पास कंगाल की हैसियत से सहायता मांगने जाय तो उन्हें उसके भोजन-वन और निवास के लिए प्रबन्ध करना ही पड़ता है। वे अनिच्छा और कठोरता से काम ले सकते हैं, जितनी उनसे बने उतनी नागवार और अपमान- जनक शर्ते जोड़ सकते हैं, वे कंगाल को यदि वह स्वस्थ हो तो घृणास्पद और अर्थहीन काम में लगा सकते हैं और इन्कार करने पर जेल भेज सकते हैं, रहने के लिए ऐसा मकान दे सकते हैं जिस में वुड्ढे और जवान, स्वस्थ और रोगी, निर्दोष बालक-बालिकाएँ तथा पुरानी वेश्याएं और भिखारी एक दूसरे को बिगाड़ने के लिए भेड़-बकरियों की तरह बेतरतीवी से भर दिए जाते हैं । यदि कंगाल को मत देने का अधिकार हो तो मताधिकार छीन कर उस पर सामाजिक कलंक लगा सकते हैं और कुछ सरकारी नौकरियाँ या पद पाने से वंचित कर सकते है । संक्षेप में, वे अधिकारी और सम्पन्न पुरुष गरीब को इतना मजबूर कर दे सकते हैं कि वह हर तरह की कठिनाइयों झेलना मंजूर कर ले; किन्तु महायता न मांगे । यह सब कुछ होते हए भी यदि कंगाल मदद माँगे ही तो उन्हें भख मार कर देनी पडेगी । इस सीमा तक इंग्लैण्ड का विधान मूलतः साम्यवादी विधान है । किन्तु जिस कठोरता और दुष्टता के साथ उस पर अमल होता है, वह गम्भीर दोप है, कारण कि इंग्लैण्ड को दरिद्रता के गर्त से उवारने के बजाय वह दरिद्रता को और भी पतनकारी बना देता है। फिर भी मूल सिद्धान्त तो उस में है ही। रानी ऐलिजावेथ ने कहा था कि इंग्लैण्ड में भूख के कारण या पाश्रय के अभाव में कोई न मरने पाए । धनी या दरिद्र समस्त जाति पर होने वाले दरिद्रता के भीपण दुप्परिणामों का अनुभव ले चुकने के बाद आज हम को और आगे बढ़ कर कहना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति गरीव न रहे । जब हम नित्य प्रति सम्पत्ति का विभाजन करें तो सव से पहले इस बात का ध्यान रखें कि हरएक को इतना तो मिल ही जाय कि जिससे वह साधारणतः सम्मान और पाराम के साथ रह सके। यदि वे कोई ऐसा काम करें या न करें जिससे कहा जा सके कि वे कुछ भी पाने के अधिकारी नहीं हैं तो जिस
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