विभाजन की मान योजनायें उतनी ही वृत निकालने की कोशिश करना जिननी वर्षा के समय उसमें गिरी हों। यह सम्भव हो सकना है कि हरएक को काम के घंटों के हिसाब से पैसा दे दिया जाय; किन्तु उस दशा में कुछ चार पैसे घन्टा मांगने, कुच चार रपया घन्टा धार कुछ चार माँ रपया घन्टे में भी राजी न होंगे। ये भाव इस बात पर निर्भर रहते हैं कि काम करने वालों की संख्या कितनी है और वे गरीब है या धनी । जब मजदूरों की मन्या अधिक होती है और उन्हें काम नहीं मिलना नो वे इतनी थोडी मजदूरी पर काम करने को तैयार हो जाते हैं कि जिससे वे दो समय केवल अपना पेट भर सके। कुछ स्थानों में तो निन्य की बेकारी के कारण माधारण मज़दूरी की दर इननी थोड़ी रह गई है कि लोगों का पेट भी नहीं भरता। उदाहरण के लिए चार पैसे में हम एक मजदूर में घंटा भर लकडी दिखा सकते हैं अथवा एक नील बोझा उठवा मक्ने हैं। इसके विपरीन हमाग दायर हम से एक घन्टे के चार रुपये मांग मरना है और एक बैरिस्टर एक घंटा पैरवी करने के लिए चार मी म्पा में भी आनाकानी कर सकता है। हम ढाक्टरों और बैरिस्टगे को इतना अधिक का देते हैं ? इसलिए कि ऐसे लोगों की मंग्या कम होनी है और दुनिया में ऐसे मरीज़ों और मुवक्किलों की कमी नहीं है जो उन्हें बड़ी-बड़ी रकम देते रहने हैं । जो यही रकमें नहीं दे पाने, उन्हें उनकी मदद भी नहीं मिलनी । अर्थशाम्र की भाषा में यह उत्पत्ति और मांग का नियम कहलाता है। किन्तु इस नियम में जो परिणाम पैदा होते हैं. उनको हम चांदनीय नहीं कह सकने । यदि एक व्यक्ति को एक घटे में सिर्फ चार पैसा मिले और दूसरे को चार सौ रुपया तो क्या सम्पत्ति का यह विभाजन रचिन होगा, नैतिक होगा ? पश्चिमी देशों में मुन्दर मुखाकृति और हाव-भाव वाला एक बालक, जो अभिनय कला में थोड़ी गति रखता हो. साधारण व्यवसाय में दिन-रात विस-विस करने वाले अपने बाप की अपना मैकडों गुना अधिक कमा सकता है। श्रात कौन नहीं जानना
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