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सामाजवाद:पूँजीवाद


जाते हैं जो हमेशा मौजूदा व्यवस्था का समर्थन करते हैं। फलस्वरूप स्वतंत्रता और लोकतंत्र, जैसा कि ऊपर बताया गया है, उस समय तक ठीक काम देते हैं, जबतक कि सरकार पुलिस के काम के अलावा और कुछ नहीं करती, किन्तु जब कोई फासिस्ट नेता शासन की अन्धेरगर्दी को दूर करने के लिए भागे श्राता है या सोविएट तंत्र पूजीवाद को नष्ट करके लोगों का पेट भरने के लिए सब प्रकार के काम हाय में लेता है तो स्वतंत्रता और लोकतंत्र की उपरोक्त परिभाषाओं को रही की टोकरी में फैंक देना पड़ता है। दुनिया में ऐसे भी लोग होते हैं जो स्वतंत्रता न होने पर भी स्वतंत्रता की और शान्ति न होने पर भी शान्ति की रट लगाते हैं। ऐसे लोग हास्यास्पद मनोवृत्ति का परिचय देते हैं। फासिस्टवाद और साम्यवाद में उत्पादन के तरीकों अथवा औद्योगिक अनुशासन के सम्बन्ध में अन्तर नहीं है, असली भेद विभाजन के सम्बन्ध में है। इस सम्बन्ध में पूंजीवाद चुरी तरह असफल हुआ है । इसका एकमात्र इलाज साम्यवाद है; किन्तु फासिस्टवाद लोगों को साम्यवाद से घृणा करने की शिक्षा देता है। फासिस्टवाद के पक्ष में यदि कुछ कहा जा सकता है तो यही कि वह लोगों को अपने छोटे स्वार्थों की अपेक्षा राष्ट्रीय स्वार्थों का विचार करना सिखाता है। इस प्रकार फासिस्टवाद उदारवाद से अच्छा है, क्योंकि वह राष्ट्र की शक्तियों को संगठित करता है और राष्ट्रीय दृष्टिकोण पैदा करता है। किन्तु जबतक वह व्यक्तिगत सम्पति की रक्षा करता है, तबतक समाज में एक और असाधारण अमीरी और दूसरी ओर असाधारण गरीवी कायम रहेगी और श्रमजीवी क्रान्ति का भय हमेशा बना रहेगा। यदि फासिस्टवाद पूंजीवाद की श्राखिरी श्रोट बना रहता है तो उसका अन्त निश्चित है।