की पुनर्रचना प्रारम्भ करता है। उसके इस काम को हर कोई तारीफ
करेगा। किन्तु इसका परिणाम यह होगा कि जमीन की कीमतें बहुत बढ़
जायंगी और यह रुपया जनीन के मालिकों की जेयों में चला जायगा ।
सामान्य नागरिकों की हालत में कोई परिवर्तन न होगा । उन्हे पहिले के
समान ही कठोर परिश्रम करना पड़ेगा और गरीबी का सामना करना
पड़ेगा। शहरों में मोटरों और लॉरियों वालों की सुविधा के लिए प्रशस्त
राजमार्ग बनाये जाते हैं और इन सड़कों के दोनों तरफ की जमीन इमारतें
बनाने के लिए काम में लाई जाती है । इस प्रकार पहले जिस जमीन का
मूल्य सी या पचास रुपया होता है, उसी का हजार-पन्द्रह सौ रुपया हो
जाता है। पंजीवाद का हमारे समाज में इतना जोर है कि इस प्रकार विना
कुछ परिश्रम किये कुछ लोगों की जेबों में हजारों रुपया चला जाता है।
और कोई उसके खिलाफ धावाज़ नहीं उठाता ।
यदि लुई नेपोलियन ने पेरिस में प्रशस्त सड़कें बनाने के साथ ही
इमारत बनाने और किराये वसूल करने का काम म्युनिसिपैलिटी को सौंपा
होता तो उसे दस वर्ष पहले ही अपने तस्त से हाथ धो लेना पड़ता।
यदि हम इस बात की तुलना करें कि सन् १९२६ की मंदी के बाद रूस
ने कितनी प्रगति की है और फासिस्ट देशों ने उससे दुने अर्से में कितनी
प्रगति की है तो हमें मालूम हो जायगा कि फासिस्टवाद में पूंजीवाद की
सारी कमियाँ और बुराइयाँ विद्यमान है और वह सभ्यता की रक्षा नहीं
कर सकता, उद्योगों में वह जो सुधार करता है, उसका परिणाम भी
यही होता है कि कारों की संरया बढ़ती है । वह वेकार-वृत्तियाँ देता है,
इसलिए कि वेकार कहीं उपद्रव न कर बैठे। जब मजदूर भूस्वामियों को
धनवान बनाने के लिए गढदों को भरने और सड़कें बनाने का काम पूरा
कर चुकते हैं तो यह सवाल पैदा होता है कि पेट भरने के लिए वे भागे
क्या करें ? फासिस्टवाद कहता है कि जमीन और पूंजी व्यक्तिगत सम्पत्ति
है, अतः उसका मजदूरों के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। इसके
मुकाविले में साम्यवाद कहता है कि मजदूरों को इस तरह संगठित किया
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रूसी साम्यवाद