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समाजवाद:पूँजीवाद

२०२ समाजवाद : पूंजीवाद को संगठित करने का प्रयत्न करेगा । अाम जनता की एक अजीब मनोवृत्ति होती है। वह प्रचलित व्यवस्था के विरुद्ध पड़यंत्र करने का ख़याल भी नहीं करती । वह समझती है कि पुलिस को राज्य-विरोधी संस्थाओं को दवा देना चाहिए । वह अच्छे कपड़े पहन कर मन्दिरों, मस्जिदों और गिरजाघरों या मेलो-ठेलों में जाती है, हॉकी फुटबाल, टेनिस या कबड्डी खेलनी है। राज-दरवारों, शाही शादियों या घुड़दौड़ के प्रदर्शनों में शरीक होती है, किसी राजा, सन्त या श्रौलिया के शव-दर्शन के लिए लाखों की तादाद में जमा हो जाती है, अपना खास धर्म और प्राचार समझती है, किन्तु करती वही है जो सब करते हैं। जो नहीं करता, उस पर बिगड़ पड़ती है । पहेलियों का हल निकालने में अपना दिमाग़ खपानी है और खेल-तमाशों में अपना शरीर। अधिकतर लोग ऐसे होते है जो इन सब बातों से दूर रहते हैं और कमाने तथा अपने वाल-बच्चों का पालन-पोपण करने में जीवन गुजार देते हैं। जो लोग राजनैतिक और सामाजिक मामलों में दिलचस्पी लेते हैं, उनको श्राम जनता शंका और अरुचि की निगाह से देखती है या सनकी समझती है। किसी-किसी का वह आदर भी करती है, पर वह नहीं जानती कि वह ऐसा क्यों करती है। ये लोग अपनं श्रापको देशभक्त समझते हैं । क्योंकि उनके ख़याल से परमात्मा ने उनको दूसरे देशों के लोगों से ऊँचा बनाया है। इस दम्भ को संन्तुष्ट करने के लिये वे कीर्ति के प्यासे होते हैं अर्थात् यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि उनके वहापुर भाइयों और पुत्रों ने कितनी लडाइयों में विजय प्राप्त की । इतिहास उनके लिये युद्धों की एक श्रंखला होता है, जिसमें उनके पक्ष की हमेशा विजय होती है । ____ यदि ऐसे विशाल जन-समाज को राजनैतिक रूप में संगठित किया जाय तो कहना न होगा कि वह राजनैतिक दृष्टि से जाग्रत छोटे-छोटे दलों को पृथ्वी तल पर से निःशेप करने के लिए मत दे सकता है और श्रावश्यक हो तो स्वयं भी उन्हें मौत के घाट उतार सकता है। ऐसी दशा में अधिनायक यही कर सकता है कि वह मूखी के साथ उनकी मूर्खता के अनुकूल वर्ताव करे अर्थात् जैसी बातें उन्हें पसन्द हों, वैसी