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समाजवाद : पूँजीवाद


आय की समानता और उसके फलस्वरूप कायम होने वाली सामाजिक समानता मानव-समाज की स्थिरता के लिए आवश्यक है और आय की समानता की कसौटी यह है कि सब लोग बिना किसी भेदभाव के आपस में शादी-विवाह कर सकें।

रूस की सोविएट सरकार की सफलताओं का थोड़े में वर्णन नहीं किया जा सकता । इंग्लैण्ड के दो ग्रन्थकारों-सिढने और विट्रिस वेव ने 'सोविएट साम्यवाद : एक नई सभ्यता' नामक अपनी १९४३ पृष्ठों की पुस्तक में उन सब का विस्तार से वर्णन किया है। सन् १९३६ में मास्को में नया विधान जारी किया गया है। इस विधान के द्वारा युरोप और अमेरिका के लोकमत को खुश करने की कोशिश की गई है। किन्तु इसकी उपयोगिता की अभी परीक्षा होनी शेप है।

टाटरकी का खयाल है कि रुस को यूरोप के श्रमजीवियों का अगुश्रा बनाना चाहिए और इस प्रकार पूँजीवादी राष्ट्रों के साथ हमेशा युद्ध की स्थिति में रहना चाहिए । स्टालिन इस बात से सहमत नहीं है। उसका कहना है कि पहले अपने घर पर शक्ति लगानी चाहिए और वहां आदर्श समाजवाद की स्थापना कर लेनी चाहिए । इस बारे में विजय स्टालिन की हुई है। ट्राटस्की आज रूस से निर्वासित है। स्टालिन की विजय विवेक की विजय है।

फासिस्टवाद-यहाँ फासिस्टवाद का थोड़ा जिक्र कर देना भी अंप्रासांगिक न होगा । फासिस्टवाद दुनिया के लिए कोई नया वाद नहीं है । आज के फासिस्टवाद और पुराने फासिस्टवाद में यदि कोई अन्तर है तो केवल यही कि उसका प्रयोग भिन्न परिस्थितियों में हो रहा है । जव राज्य संस्था की गति इतनी धीमी हो जाती है कि वह अपना काम ठीक नहीं कर सकती तो कोई साहसी पुरुष आगे आता है और वग़ावत का झंडा खड़ा करके राज्य-सत्ता को हथिया लेता है । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। रोम के जूलियस सीजर, इंग्लैण्ड के क्रोमवेल, और फ्रांस के नेपोलियन तथा उसके भतीजे लुई नेपोलियन की गणना ऐसे ही लोगों में की जा सकती है। ये पुराने जमाने के फासिस्ट नेता थे।