समाजवाद : पूँजीवाद हालात विल्कुल बदल जायंगे । इसलिए आने वाले स्वर्ग की प्रतीक्षा में वे पहले से ही हाथ-पर-हाथ धर कर बैठ रहते हैं । किन्तु वे भूल जाते हैं कि साम्यवाद को चलाने के लिए पूँजीवादी जमाने से भी ज़्यादा कुशल कारीगरों और विशेषज्ञों की ज़रूरत होती है। ____ क्रान्ति के परिणामों के बारे में महिलाओं का कुछ विचित्र ही खयाल वना । जो अधिक कल्पनाशील थीं, उन्होंने सोचा कि श्रमजीवियों की हुकूमत में स्त्री-पुरुषों के सम्बन्ध स्वच्छन्दता-पूर्ण होंगे और सामाजिक मर्यादाओं को एकदम हटा दिया जायगा। सोविएट शासक यद्यपि अपने व्यक्तिगत जीवन में संयमशील थे, किन्तु अधिकार और सत्ता से उन्हें इतनी चिढ़ हो गई थी कि उन्होंने नासमझ महिला- मित्रों की बेहूदगी को बर्दाश्त किया, नैतिक नियमों में इतना परिवर्तन किया कि तलाक बड़ा सरल होगा। किन्तु अनुभव लोगों को अब स्वच्छंदता से संयम की घोर ले जा रहा है। यदि हम साम्यवाद का विश्लेपण करें तो हमें मालूम होगा कि श्राय की समानता साम्यवाद का सार है। किन्तु मार्क्स व्यक्तिगत सम्पत्ति की बुराइयों से इतना अभिभूत था कि वह इस समस्या की ओर ध्यान ही न दे सका । जव रूस में नई अर्थ-नीति सामान्य स्मृद्धि लाने में असमर्थ रही और सोविएट सरकार पर लोगों को काम देने और उनको मजदूरी स्थिर करने का भार पड़ा तो उसे अनुभव हुआ कि स्टेशन- मास्टरों अथवा शरावी मजदूरों को गोली से उड़ा देने से आवश्यक उत्पादन नहीं हो सकता और न ही मजदूरों की वे टुकड़ियाँ कारगर हो सकती हैं जो देश में एक सिरे से दूसरे सिरे तक लोगों को अपने उदाहरण से काम करना सिखाती फिरती थीं । आवश्यकता इस बात की थी कि काम के प्रकार निश्चित किये जाते और मजदूरों का भी विभाजन किया जाता । हर प्रकार के काम के लिए सिलसिलेवार बढ़ी हुई मजदूरी तय की जाती । इस प्रकार निम्न श्रेणी के मजदूरों को उच्च श्रेणी का काम करने की योग्यता प्राप्त करने पर अधिक मजदूरी पाने का हक होता । कुछ वोल्शेविक नेता अव भी यह मानते हैं कि प्राय की समानता समाजवाद
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