१६३ रूसी साम्यवाद जमीन छीन ली। किन्तु श्राम किसान उनका स्थान न ले सकते थे। फलतः खेती बर्याद होगई । जब सरकार ने नई अर्थ-नीति अपनाई तो कुलक लोगों को वापस बुलाया गया और काम पर लगाया गया। __ मध्यम श्रेणी के शिक्षितों पर भी नई व्यवस्था में पायन्दियां लगाई गई । उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया। उनके बच्चों को यची-खुची शिक्षा-सुविधा पर सन्तोप करना पड़ा। खयाल यह था कि इन लोगों का पंजीवादी स्वभाव कटिनता से बदलेगा और श्राम लोगों में संचालन की योग्यता काफी मात्रा में विद्यमान है, केवल उसको विकास का अवसर नहीं मिला है। सिद्धान्त की दृष्टि से यह ठीक है. किन्तु स्वाभाविक योग्यता के साथ साक्षरता और थोड़ा व्यावसायिक अनुभव भी होना चाहिए । राज्य ने जिन कारखानों को कायम किया था उनमें पढ़े-लिखे लोगों की भी काफ़ी ज़रूरत थी। आखिर मध्यम श्रेणी के लोगों को काम पर लगाया गया। सिर्फ उन्हें इतना कहना पड़ा कि उनके माता-पिता किसान थे । उनको बाद में बौद्धिक श्रमजीवी के नाम से पुकारा जाने लगा। इनमें ऐसे भी कुछ लोग थे जो किसी काम के लायक न रह गये थे या नई व्यवस्था में काम करना पसन्द न करते थे। उनकी हालत बुरी हुई, किन्तु उनके बच्चों ने जल्दी ही साम्यवादी तत्वों को अपना लिया । जो शोपण करने वाले वर्ग थे, जैसे कि भूस्वामी, मकान-मालिक और ऊंचे घरानों वाले, वे सब दूसरे देशो को भाग गये और यथासम्भव माज से अपनी जिन्दगी बसर करने लगे। उन्हें उम्मीद थी कि रूस में फिर पुराना ज़माना थायगा, किन्तु अभीतक तो उनकी यह उम्मीद पूरी नहीं हुई है। रूस का शाही परिवार भगोड़ों में शामिल न हो सका। उदारवादी क्रान्ति ने जब उसे पदच्युत किया तो करन्स्की और उसके साथियों को यह नहीं सूझा कि उसका क्या किया जाय 1 जिस प्रकार इंग्लैण्ड और फ्रांस में राजाधों को मौत के घाट उतारा गया, उसी प्रकार रूस के जार को भी क्रान्तिकारी अदालत के सामने पेश करके गोली से उड़ाया जा
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