पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/२०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
विभाजन कैसे करें ?

दूसरी व्यवस्था यह भी सम्भव हो सकती है कि वे सब जितना आवश्यक हो उससे नित्य अधिक काम करें, इस शर्त के साथ कि वे जबतक जवान न हो जाये और पढ़-लिख न जायें उन्हें काम न करना पड़ेगा और पचास वर्ष की अवस्या हो जाने के याद वे काम बंद कर शेप जीवन आराम में बिता सकेंगे। इस प्रकार श्रम, अवकाश और सम्पत्ति के न्याय विभाजन और पूर्ण दासता के बीच चीसियों तरह की भिन्न-भिन्न व्यवस्थायें हो सकती हैं। दास-प्रथा, ज़मींदारी प्रथा, पूंजीवाद, समाजवाद आदि सभी मूल में सम्पत्ति विभाजन की भिन्न-भिन्न योजनाएँ हैं । इन प्रचलित विभाजन प्रथाओं को अपने हित में बदलने के लिए उनसे असंतुष्ट न्यक्तियों औरो वर्गों ने घोर संघर्ष किये हैं जिन्हे हम क्रान्तियाँ कहते हैं ।

सम्पत्ति-विभाजन के प्रश्न को हल करने के लिए कई योजनाएँ सामने आई हैं। यूरोप में ईसाई देवदूतों और उनके अनुयायियों ने एक कौटुबिक योजना का प्रचार किया था। उसके अनुसार उनमें से प्रत्येक न्यक्ति अपनी सारी सम्पत्ति एक संयुक्त भंडार में डाल देता था और अपनी आवश्यकतानुसार उलम मे लेता रहता था। छोटी-छोटी धार्मिक जातियों में, जहाँ लोग साथ-साथ रहते हैं और एक दूसरे को जानते हैं. उस पर आज भी अमल क्यिा जाता है। वे कुटुम्ब में इसका श्रांशिक ही पालन करते हैं। जो कुछ कमाते हैं उसका कुछ हिस्सा वे अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रख लेते हैं और शेष कुटुम्ब के खर्च के लिए दे देते हैं। प्रत. कुटुम्ब में भी शुद्ध साम्यवाद नहीं होता।

इस कौटुम्यिक साम्यवाद का पडोस में ही रहने वाले लोगों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। हर एक घर में अलग खाना बनता है। दूसरे उसके लिए खर्च नहीं उठाते और न उनको उसमें हिस्सेदार बनने का ही हक्क होता है। आधुनिक नगरों में पानी अवश्य सब लोगों को साम्य-वादी पद्धति से ही मिलता है। हर एक घर में पानी पहुंच सके इसके लिए सभी लोग सामुदायिक कोप में जल-कर के नाम से पैसा जमा कराते है<\br>