पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१९८

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रूसी साम्यवाद रूस का शिना-प्रोग्राम काफ़ी खर्चीला था। पूंजीवादी देशों में चचों को स्कूल नामधारी कैदसानों में भर दिया जाता है और दस साल पढ़ चुकने के बाद भी वे न तो खुद अपनी भाषा भली प्रकार बोल सकते हैं और न अच्छी तरह चिट्ठी ही लिख सकते हैं। उनमें से कुछ को ही उय शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति मिलती है और वे विश्वविद्यालयों से पूंजीवादी मशीन के पुर्जे बन कर निकलते हैं। ल्सी विश्वविद्यालयों की शिक्षा समाजवाद के अनुकूल होती तो भी लाखों ल्सी बच्चों का एक प्रतिशत भी उनमें न समा सकता था। ल्स को तो संयुक्त कृपि-शालाओं थौर यंत्र-शालाओं की ज़रूरत थी। किन्तु संयुक्त कृपि बिना ट्रेक्टों (यांत्रिक हलो) के नहीं हो सकती और यंत्र-शालाओं के लिए बहु- मूल्य औजारों से सजित प्रयोगशालाये चाहिएं। इनको खरीदने के लिए रुपये की जरूरत थी और रुपया कोई देश रूस को देने को तैयार न था। कइयों ने तो रूस के साथ व्यापार करना ही बन्द कर दिया। ज्या-त्या करके रुस को अपने-श्राप चीज़ निर्माण करनी पड़ी। रूस में सभी अनभिज्ञ थे। रूस-जैसे विशाल देश के मुक्काविले में वहाँ के उद्योग बहुत छोटे थे। जो थे, उनकी कारखानों की जन्ती और मुनाफाखोरों के चहिष्कार के कारण काफी पुरी हालत होगई थी, इस में तबतक सुधार न हुआ जबतक या तो पुराने प्रयन्धकों को वापस न बुलाया गया या साम्यवादी दल ने नये प्रबन्धक तलाश न कर लिये। ____ रूस में रेल भी बहुत कम थीं । ज्योंही उनकी जन्ती घोषित की गई कि लोग सरकारी नौकरी को मुफ्तखोरी का ज़रिया समझने लगे। जिस समय लोगों को भूखों मरने से बचाने के लिये निहायत फुर्ती की जरूरत थी, उस समय देहाती स्टेशन-मास्टर वडे थाराम के साथ काम करने लगे। उनकी लापरवाही से तंग श्राकर यातायात के मिनिस्टर ने एक यार खुद एक स्टेशन के कर्मचारियों को गोली से उदा दिया । अाखिर मुफ्तखोर और सुस्त कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने के लिए एक पुलिस दल संगठित किया गया। यह दल 'चेका' के नाम से मसिद्ध हुश्रा । यह भय रूसी पुलिस का खुफिया विभाग है । उसने