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रुसी माम्यवाद

ल्सी माम्यवाद २२५ किया गया था। सन् १९१७ के लगभग उनका सारा उत्साह टरडा पट गया, जो लढाई के मोर्चे पर पाली बार जाने के समय पंा होता है। उस समय लिएट में मेना की नई भनी मन्द पढ़ गई थी और लोगों को ग्याइयों में सपने के लिए शनिवार्य मैनिक सेवा का प्रानून जारी करना पड़ा था। अंग्रेजी सेना के पास हथियारों की कमी न थी और पान को भी भरपूर मिलना था। उनके परिवारों को भी सचिन धार्थिक सहायता दी जाती थी। किन्नु ल्सी मैनिक इसमय से वंचित थे। उनमें में कइयों के पास न हथियार थे और न अन्य साधन- मामी । ललाई उनकी ममम के बाहर की बात थी। वे सिर्फ यह जानने थे कि एक विदेशी गजपुगर को जिसका उनके साथ कोई सासन्ध न था, किसी ने मार डाला है और इसीलिए यह लडाई हो रही है। मगरिन जर्मन मेना ने मन् १९१७ के लगभग चारों ओर में रूसी सेना को संहार और परान्न करना प्रारम्भ किया । फलतः ल्ली मनिक बट्टी नादाद में भागने लगे। उन्होंने अफसरों पर अकसरी करने के लिए कमेटियों भी मंगटिन की। किन्तु इससे हार न रखी। प्राधिरकार यागी मनिक जिनके पास अपने बैन थे, वे खेत पर लौट थाये । जिनको सेनों पर मजदूरी मिली, वे मजदूरी करने लगे। किन्तु अधिकतर बेकार्ग की टोली में शामिल हो गये और शान्ति तया भूमि के लिए, शोर मचाने हुए पेट्रोग्रेड की सड़कों पर भटकने लगे। रूप की उदार सरकार यातें बनानी रही और लड़ाई को इस तरह जारी रक्या मानों कुछ हुश्रा ही न हो। इस मौके पर लेनिन सामने याया। यह भाग उगलने वाला नेता ही नहीं, बल्कि अपने जमाने का सबसे बडा राजनीतिज्ञ मायित हुना । लेनिन ने सैनिकों और नाविकों को शान्ति का श्राश्वासन दिया और थल और जल सेना का प्रेम-पात्र यन गया। किसानों को, जिनमें से अधिकांश फिर सिपाही यन गये थे, जमीन देने का मना किया। इस प्रकार इन ताकतों को अपनी पीठ पर करके लेनिन ने करंन्सकी कि सरकार को उखाड़ फेंका और देश से निकाल याहर किया। उसने जर्मनी के साथ सुलह कर ली और