१५४ समाजवाद पूंजीवाद खरीदने-बेचने के समय एक-दूसरे को देते रहते हैं। इस प्रकार हम काग़ज़ के नोटों और ताम्बे तथा चाँदी के सिक्कों को काम में लाते हैं और देखते हैं कि वे सोने के सिक्कों के बराबर ही काम देते हैं। तब यह सवाल उठता है कि जब सोने के सिक्कों के बिना काम चल जाता है तो फिर सोने के सिके रक्खे ही क्यों जाँय ? अवश्य ही यदि सरकारों की ईमानदारी पर भरोसा किया जा सके तो सोने के सिक्कों को हम उठा सकते हैं। किन्तु यह बहुत बडी 'यदि' है। जय सिका विशुद्ध सोने का होता है तो सिक्कों की खरीदने की शक्ति सरकार की ईमानदारी पर निर्भर नहीं रहती। बहुमूल्य धातु के रूप में वे मूल्यवान होते हैं और यदि सरकार खरीद-बिक्री की श्रावश्यकता से अधिक उनको जारी करे तो उनका दूसरा उपयोग भी किया जा सकता है । किन्तु सरकार काग़ज़ी रुपया बनाना तबतक जारी रख सकती है जबतक कि उसका कोई मूल्य ही न रह जाय । कुछ चीजों की कीमत अमुक कारण से घट या बढ़ सकती है। किन्तु जब चीजों की कीमत एकसाथ घटती या बढ़ती है तो चीजों की नहीं, रुपयों की कीमत बदलती है । जिन देशों में काग़ज़ी रुपया चलता हो, वहाँ की सरकारों को इन हलचलों को सावधानी के साथ देखते रहना चाहिए और जब कीमतें एकसाथ बढ़े तो कीमतें घट जाने तक नोटों का प्रचलन कम कर देना चाहिए। इसके विपरीत जब सव कीमतें एक साथ घटें तो सरकारों को क़ीमतें बढ़ने तक नये नोट जारी करना चाहिए । जरूरी बात यह है कि देश में इतना रुपया हो कि उससे नकद खरीद-विक्री का सारा काम किया जा सके । ईमानदार और समझदार सरकार का यह काम है कि वह मांग के अनुसार पूर्ति का समन्वय करके रुपये का मूल्य स्थिर रक्खे । आधुनिक बैंकों ने सिक्कों, नोटों या किसी प्रकार के रुपयों के बिना ही प्रचुर परिमाण में व्यवसाय का होना सम्मव कर दिया है । उदाहरण के लिये जब आपको किसी काम के लिये रुपया अदा करना होता है तो आप नकद रुपया देने के बजाय अपने बैंक के नाम चेक काट देते हैं। यह चेक सिकरने के लिये किसी भी बैंक को दिया जा सकता है। इस
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समाजवाद : पूँजीवाद