सार्वत्रिक नहीं बना सकते । कारण, परिस्थितियों बदलती रहती है । इस प्रकार हम जब स्थायी कानून नहीं बना सकते तो उनसे सम्बन्धित प्रश्नों का हल भी स्थायी नहीं निकल सकता ।
हम कह सकते हैं कि हमें तो इस स्थिति में युग बीत गए ! यह सच है, किन्तु कभी-कभी ऐसा होता है कि जिन प्रश्नों पर लोगों का ध्यान कभी युगों तक नहीं जाता, वे लोगों के सामने यकायक भूकम्प की तरह श्रा खडे होते हैं और उन पर उन्हें विचार करना ही होता है । सम्पत्ति के विमाजन का प्रश्न एक ऐसा ही प्रश्न है । वह युगों के बाद यकायक लोगों के सामने आया है। इसलिए उस पर फिर विचार करना ही होगा।
जब हम यह कहते हैं कि लोगों का ध्यान इन प्रश्नों की ओर युगों से नहीं गया तब हम को यह नहीं भूल जाना चाहिए कि विचारशील लोगों।का ध्यान इस ओर सदा गया है । पश्चिम में ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने लोगों को धनी और गरीब, भालसी और अतिश्रमी इन दो भागों में 'विभक्त करने का विरोध किया है। उन लोगो का वह अरण्यरोदन ही था। मामूली लोगों ने उसे तब सुना जब यूरोप की धारासभाओं में साधारण राजनीतिज्ञों ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि सम्पत्ति का वर्तमान विभाजन इतना विषम, भीपण, हास्यास्पद, असहनीय और दुष्टतापूर्ण है कि उसमें भारी परिवर्तन किए बिना सम्यता को नाश से नहीं बचाया जा सकता।
इसलिए सम्पत्ति के विभाजन का प्रश्न अत्यावश्यक और अभी तक 'अनिर्णीत है। इस पर हमें फिर विचार करना चाहिए।
- २:
विभाजन कैसे करें ?
देश में सम्पत्ति हर साल पैदा होती है और हम उसी से जीवित
रहते हैं। रुपया वास्तव में सम्पत्ति नहीं है। वह तो सोने, चांदी, तांबे या काग़ज़ का टुकड़ा मात्र है। उसके द्वारा श्रादमी को अमुक परिमाण