१४२ समाजघाद : पूँजीवाद मुश्किल होता है । यहां परोपकार जैसी चीज़ के लिए कोई स्थान नहीं होता । जब हम रुपया उधार लेते हैं नो हमको उसके बदले कुछ अतिरिक्त रकम और चुकानी पड़ती है । साधारण भाषा में इमी को सूद कहते हैं । यदि हम अपना बचा हुआ रुपया दूसरे के पास जमा कराते हैं और उसके बदले में कुछ रकम भी सर्च करते हैं तो इसको श्रथ-शास्त्री अप्रत्यरा सूद कहेंगे। किन्तु यदि हम अपना बचा हुआ रुपया दूसरे को उधार देते हैं और उसके बदले में कुछ रकम वसूल करते हैं तो यह प्रत्यक्ष सूद कहा जायगा। अाजकल म्पया लेने में कुछ मिलता नहीं, उल्टा देना ही पड़ता है । इस का कारण यह है कि समाज में श्राय का समान बंटवारा न होने के कारण ऐसे लोग बहुत कम हैं जो रपया उधार दे सकते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोगों की चहुतायत है जो रुपया उधार लेने और उसका अच्छा मुथाविजा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। किन्तु यदि हमारे समाज में गरीबों के बजाय धनिकों की संस्था अधिक होजाय तो स्थिति बिल्कुल उल्टी हो सकती है । उस हालत में बैंक हमारा यचा हुया रुपया जमा रखने के लिए बहुत ऊंची कीमत वसूल करेगा। किन्तु जयनक पूंजीवाद है तब- तक यह स्थिति पैदा नहीं हो सकती। ____ रुपया-बाज़ार में बचे हुए रुपये के बदले पार्पिक थामदनिर्यो खरीदी जाती हैं। सौ रुपये के बदले कितनी वार्पिक श्राय खरीदी जा सकती है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बाजार में कितना रुपया मौजूद है और उसको लेने वालों की संख्या कितनी है । मुरक्षितता और परिस्थितियों के अनुसार कमी वह तीन रुपया सैकड़ा, कभी छः रुपया सैकड़ा और कभी नौ रुपया सैकडा भी हो सकती है। किन्तु गरीय लोगों की रुपया- चाज़ार में गुज़र नहीं होती । वे निजी व्यक्तियों से रुपया उधार लेते हैं और उसके लिये उन्हें बहुत अधिक रकम बतौर सूद के देनी पड़ती है। चैंक को रुपया उधार देने की दर छः रुपया सैकदा होने पर भी उनको चहाँ से रुपया नहीं मिल सकता। उन्हें ३७॥ फी सैकड़ा अथवा कभी- कभी ७५ फ्री सैकडा तक सूद देना पड़ता है। इसकी वजह यह है कि
पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१४९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।