अवतक हमने सामूहिक रूप में पूँजीवाद का विचार किया । अब हम इस बात पर विचार करेंगे कि अपनी खुद की थोड़ी पूँजी रखने वालों पर व्यक्तिशः पूँजीवाद का क्या असर होता है । मान लीजिए कि
आपने अपनी आमदनी में से कुछ रुपया बचा लिया निजी पूंजी और आप उस रुपये को पूंजी के तौर पर काम में क्या है ? लाना चाहते हैं, ताकि आपकी आमदनी में थोड़ी वृद्धि हो सके । आप उस रुपये से कपड़े सीने की मशीन खरीद लेते हैं और उसकी सहायता से अपनी आमदनी बढ़ा लेते हैं। लोग कहेंगे कि यह मशीन ही आपकी पूंजी है। किन्तु असल में पूँँजी तो वह रुपया था जो मशीन खरीदने के लिए बचाया गया था और चुका,वह रूपया मशीन बनाने वाले मजदूरों को पहले ही दिया जा चुका, अतः वह रुपया रहा ही कहाँ ? अव तो सिर्फ मशीन आपके हाथ में है जो वरावर घिसती जायगी और अरबीर में उसकी कीमत पुराने लोहे के बराबर रह जायगी । यदि आगे चलकर आपको मशीन की ज़रूरत न रह जाय तो आप इसको बेच सकते हैं, किन्तु दूसरे लोग भी यदि अपनी-अपनी मशीनें बेच डालने की फिक्र में हो तो आपको मुश्किल पड़ जायगी।
कोई भी सौदा करने के लिये हमेशा दो पक्षों की जरूरत होती है, किन्तु दोनों पक्षों को अलग-अलग चीजों की जरूरत होनी
चाहिए । यदि दोनों पक्षों को एक ही चीज़ की ज़रूरत हो तो सौदा नहीं हो सकता है । यदि आप के पास सौ रुपया वचा हुया है तो आप यह रुपया उस आदमी को दे सकते हैं जिसको अपना कारबार जमाने के लिए सौ रुपये की ज़रूरत हो । आप उसको सौ रुपया दीजिए और वह