१३८ समाजवाद : पूँजीवाद नेतृत्व में मजदूर सरकार कायम हो गई। पहले की सरकारों की अपेक्षा यह सरकार अधिक योग्य साबित हुई। कारण, इसके सदस्यों ने अपनी योग्यता द्वारा ही उन्नति की थी और वे अपने विरोधियों की अपेक्षा अधिक शिक्षित और अनुभवी थे । उदार और अनुदार दलों को यह आशा न थी कि मज़दूर सरकार सफल हो सकेगी । इसलिए जब परिणाम उनकी श्राशाओं के विपरीत श्राया तो वे बड़े खिल हुए और मज़दूर सरकार को गिराने के लिए वापस में मिल वैठे । उन्होंने मज़दूर सरकार के विरुद्ध यह झूला आरोप लगाया कि उसको रूस की साम्यवादी सरकार से सम्बन्ध है और इस प्रकार जनमन के भड़काने की कोशिश की। इस समय पार्लमेण्ट का जो चुनाव हुआ, उसका यह नतीजा यह निकला कि मज़दूर-दल तो अपनी स्थिति बनाये रहा, किन्तु उदार दल कहीं का न रहा । किन्तु सरकार अनुदार दल वालों के हाथ में चली गई । इसके बाद एकबार और मज़दूर सरकार स्थापित हुई, किन्तु आर्थिक मन्दी और संसार-व्यापी युद्ध के बढ़ते हुए दर के कारण वह अधिक न टिक पाई। साथ ही मज़दूर दल में फूट भी फैल गई। मि० मेकडोनल्ड मज़दूर-दल से अलग हो गये और उन्होंने सम्मिलित अर्थात् सभी दलों की सरकार बनाने में सहयोग दिया। इस कारण यद्यपि मज़दूर-दल का बल कम हो गया है, किन्तु वह आज भी पार्लमेण्ट में विरोधी दल के रूप में मौजूद है और अपने अस्तित्व का समय-समय पर परिचय देता रहता है। अब सवाल यह है कि राष्ट्र की ज़मीन, पूँजी और उद्योग पर राष्ट्र का स्वामित्व और नियंत्रण हो अथवा मुट्ठी भर निजी आदमी उनका मनमाना उपयोग करते रहें ? यह निश्चित है कि जबतक जमीन, पूंजी और उद्योगों का नियंत्रण सरकार के हाथ में न हो, तबतक श्रम का भविष्य वह पैदावार का अथवा श्रम का समान-विभाजन नहीं कर सकती है। दूसरा सवाल यह है कि जबतक पूंजीवाद कायम रहता है तबतक प्रभुत्व किसका रहे, धनिक का या श्रमिक का ? मजदूर दल में जो लोग व्यवसाय-संघों के तरीकों को
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