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पूँजी और श्रम का संघर्ष

पूंजी और श्रम का संघर्ष के उम्मीदवारों के बीच किसी एक का पलड़ा भारी कर दे सकते थे, वे शव स्वयं अपने ही उम्मीदवार चुनने लगे। किन्तु प्रारम्भ में उन्होंने डरते-डरते अपने सिर्फ दर्जन भर उम्मीदवार पार्लमेण्ट में भेजे. जिन्होंने उद्वार दल के साथ मिल कर काम किया । इम अर्से में कार्ल मार्स और अमेरिका के हेनरी जान के विरों का प्रचार बढ़ रहा था और समाजवादी संस्थाओं का जन्म होने लगा था। इन संस्थाओं ने श्रमजीवियों में वर्गगत भावना पैदा की और उदार दल से उनका सम्बन्ध छुड़वा दिया। मतदाताओं को अब यह सिखाया गया कि मजदूरों की दृष्टि से अनुदार और उदार दोनों ही दल गये-बीते हैं। कारण, दोनों के हित मजदूरों के हितों से मेल नहीं खाते हैं। वास्तव में असली दल दी हैं। एक ओर पूँजीवादियों का दल है और दूसरी ओर अमजीवियों का । इन दोनों दलों में देश की जमीन और पूंजी पर अर्थात् उत्पत्ति के साधनों पर प्रभुत्व पाने के लिए वर्गगत आधार पर संघर्ष हो रहा है, जिसने कि अाज संसार को हिला दिया है। समाजवाद शुरू में मध्यमवर्ग का अान्दोलन था । पूंजीवाद के अन्यायों और अत्याचारों के विरूद्ध शिक्षित स्त्री-पुरुषों के दिलों में विद्रोह की भावना जगी और उन्होंने समाजवादी आन्दोलन को जन्म दिया। किन्तु वे श्रमजीवी जीवन से पूरी तरह परिचित न थे। इसलिए उनका आदर्शवाद अधिक कारगर साबित नहीं हश्रा । अन्त में सन् १८८०-६० में समाजवादियों की फेयियन संस्था ने समाजवाद को पार्लमेएट के कानूनों द्वारा अमली रूप देने की कोशिश की । सिडनी वेव इस संस्था के नेता थे। उन्होंने श्रमजीवी संगठनों का इतिहास लिखा और यह बताया कि उनकी नींव पर ही समाजवाद की इमारत खडी की जा सकती है । फेबियन संस्था ने उदार और अनुदार दोनों दलों का विरोध किया और पार्लमेण्ट में स्वतंत्र मज़दूर दल की स्थापना की जो आगे चलकर मज़दूर इल में बदल गया । इस दल को व्यवसाय-संघों और समाजवादी संस्थानों का सहयोग मिला और इसकी शक्ति धीरे-धीरे इतनी बढ़ी कि अन्त में सन् १९२३ में मि० मैकडोनल्ड के