१३४ समाजवाद : पूंजीवाद व्यावसायिक मज़दूरों की दशा उन्नत करने वाले सुधारों को इतना वृद्ध वना दे सकती है कि मालिक लोग उनकी उपेक्षा न कर सकें। वे काम के घंटे कम कराना चाहते थे, उन्होंने श्रार घंटे का दिन मानने का आन्दोलन करना शुरू किया । शुरू में यह श्रादर्श असम्भव प्रतीत हुआ और आज भी उसके प्राप्त होने में बहुत देर दिखाई देती है; किन्तु स्त्रियों, यच्चों और तरुणों के लिये दस घंटे का दिन सम्भव और ठीक प्रतीत हुआ। प्रौढ पुरुषों के सम्बन्ध में यह कहा गया कि ऐसे हरएक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह चाहे जितने घंटे काम करे । उनके काम के घन्टे नियत करके उनकी स्वतन्त्रता पर थाक्रमण नहीं किया जा सकता। किन्तु कारखानों में से जब स्त्रियाँ, छोटे बच्चे और तरूण घर चले जाते हैं तो कारखानों के एन्जिन बन्द हो जाते हैं और एन्जिनों के बन्द हो जाने पर प्रौढ़ पुरुषों को भी काम नहीं दिया जा सकता। इस प्रकार स्त्रियों, बच्चों और तरुणों के काम के घन्टे कानून द्वारा कम होने पर पुरुषों के काम के घन्टे भी कानून द्वारा कम हो गये। ___ यद्यपि उस समय पार्लमेण्ट में मजदूरों के प्रतिनिधि नहीं थे, फिर भी पार्लमेण्ट से इस प्रकार के लोकहितकारी कानून उन्होंने किस प्रकार बनवा लिये ? उस समय पार्लमेण्ट में भूस्वामियों, पूंजीपतियों और कारखानेदारों की ही भरमार थी । उन्होंने ये कानून मजदूरों की हित-भावना से प्रेरित होकर नहीं बन जाने दिये थे। उस समय इंग्लैण्ड में भूस्वामी कारखानेदारों को तुच्छ व्यवसायी कह कर घृणा की दृष्टि से देखते थे और कारखानेदार उनके विशेषाधिकारों को नष्ट करने पर तुले हुए थे। उन्होंने इंग्लैण्ड के बादशाह और अमीर, उमरावों को फ्रांस की सन् १७८६ की जैसी क्रान्ति की धमकी देकर सन् १८३२ में राज-सुधार कानून बनवा लिया और पार्लमेण्ट का नियंत्रण वंशानुगत भूस्वामियों के हाथों से छीन कर अपने हाथों में ले लिया। उन्होंने उनके जुल्मों का खूब भंडाफोड़ किया। उन्होंने बताया कि भूस्वामियों ने किस प्रकार भेड़ों और हिरनों के लिये जगह कराने के लिये पूरी भावादियों को देश से निकाल दिया, किस क्रूरता के साथ उन्होंने शिकार के कानूनों पर
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