२२४ समाजबाद : पूँजीबाद हैं जो तुम्हारी जगह कम मज़दूरी पर काम करने को तैयार हो जायेंगी।' या यह कि 'यदि मुझे तुमको पुरुषों के समान मज़दूरी देनी पड़े तो मैं अपने काम के लिए पुरुप ही रग्ब लूँगा।' ऐसी बडी लड़कियां भी बहुत सी थीं जो रहती तो थीं अपने पिताओं के साथ और पांच शिलिग प्रति सप्ताह पर काम करने चली जाती थीं कारखानों में । इस प्रकार जिस मजदूर की एक बड़ी लड़की हुई उसकी प्राय में ५ शिलिंग, जिसकी दो हुई उसकी में १० शिलिग, और जिसकी तीन हुई उसकी में १५ शिलिंग आसानी से जुड़ जाते । इससे वह उन्हें पहिले की अपेक्षा अच्छी तरह से रख सकता था। किन्तु इन शिलिंगों से उन लड़कियों का निर्वाह न हो सकता था। वे अपने खर्च का है, अपने पिताओं पर हालती थीं। इसका यह अर्थ हुआ कि वे अपने पिताओं की श्रामदनी में से लेकर उसका फल कारखाने के मालिक को देती थीं। ऐसी स्थिति में अधिक बच्चोंवाली विधवा जब अधिक मजदरी मांगती तो उसे कहा जाता कि 'यदि तुम इतने में काम न करोगी तो तुम्हारे बजाय कितनी ही लडकियां इतने में काम करने को राजी हो जायंगी।' इसके अलावा मजदूरों की स्त्रियाँ थोड़ी मजदूरी में घरों में थोड़े समय काम करने को राजी होजाती थीं और खुशी-खुशी प्राधा दिन उस काम में खर्च कर देती थीं । इससे उनकी कौटुम्विक श्रामदनी की कमी भर पूरी हो जाती थी; किन्तु इससे भी दूसरी ज़रूरतमन्द स्त्रियों की मजदूरियों में कमी होने में मदद मिली। ___ इन मजदूर स्त्रियों और लड़कियों के जेब खर्च के लिए काम करने को तैयार हो जाने से स्वतंत्र रूप से पृथक रहने वाली स्त्री या विधवा को गिरी हुई मजदूरी में निर्वाह करना कठिन हो गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि स्त्रियों को अपने निर्वाह के लिए, जो मिले उसी से विवाह करने को वाध्य होना पड़ता है। यह खराव स्थिति है, किन्तु यह स्थिति इससे भी खराव है कि विना विवाह किये भी कोई स्त्री अपने स्वाभिमान को छोडकर किसी पुरुष की मजदूरी पर निर्वाह करती है। यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को कहे कि मैं तुम्हें अपनी वैध पत्नी के रूप
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समाजवाद : पूँजीवाद