वाले लोगों के यहां घरेलू नौकरों का काम कर सकते हैं, शौकीनी की बीजों की दुकानों पर सहायक रह सकते हैं; स्त्रियों होटलों में, सिलाई की दुकानों में, बढिया खाने पकाने वालों के यहां और ऐसे ही दूसरे कामों में जिनकी धनिकों को ज़रूरत हो सकती है; नौकरी कर सकती हैं; किन्तु वे यकायक इन कामों को नहीं कर सकती, क्योंकि उन्हें वे काम आते नहीं । हाँ, उनके लड़के-लड़क्यिां जरूर अभ्यास से इन कामों को कर सकते हैं और अपने कारखानो में मजदूरी करने वाले मां-बापो से,जो अय येकार हैं, अधिक अच्छी हालत में रह सकते हैं । यह भी हो सकता है कि कुछ समय बाद कारखाने वाले स्थानों में धनिकों के आमोद-प्रमोद के लिये बाग़ लहलहाएँ और खानों के स्थान फिर रमणीक हो जायें, क्योंकि इंग्लैण्ड की पूंजी के बाहर जाने से उन में काम करना बन्द हो सकता है । जिन लोगों को इन में काम मिल जाय, वे इन परिवर्तनों को सुपरिवर्तन भी कह सकते हैं, किन्तु बात वास्तव में यह होगी कि तब इंग्लण्ड विदेशी श्रम पर निर्भर रह कर जल्दी-से-जल्दी विनाश की ओर जा रहा होगा ।
यदि कोई राष्ट्र अपने संस्कृत मिल-मजदूरों को सुशिक्षित, अच्छे कपड़े पहिनने वाला और अच्छा खाने वाला तथा अच्छी तरह से रहने चाला मिल-मजदूर बना दे, उनका योन्य सम्मान करे, जो सम्पत्ति वे पैदा करते हैं उसका उचित भाग उनको दे तो इस परिवर्तन द्वारा वह अधिक सवल, धनी, सुखी और पवित्र बनेगा, किन्तु यदि वह उनको नौकरों और नौकरानियों में परिवर्तित कर दे तो वह अपनी ही कमर तोदेगा । यह बालसी और विलासी बन जायगा और किसी दिन उस की ऐसी हालत हो जायगी कि विदेशों से निर्वाह के लिये जो रक्रम उसे मिलती है, वह उसे भी वसूल न कर सकेगा। वे देश जब उसको पोपण देने से इन्कार कर देंगे तो वह स्वावलम्बन की आदत न रहने की दशा में भूखों मरेगा ।
और भूखे लोग क्या नहीं करेंगे । जिन लोगों के पुराने धन्धे छिन