रोक दिए जायें तो चे अपनी पूँजी किसी असभ्य देश में भेज सकते हैं,
जहां वे मनमानी करने को स्वतंत्र होते हैं । इंग्लैण्ड विदेशों में के पूँजीवादी पहले हल्की शराब द्वारा अपने ही देश
को तयाह कर रहे थे, जब कानून द्वारा उनको ऐसा न करने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने लाखों काले आदमियों का पृथ्वी-तल से नामनिशान मिटा दिया । यदि उनको यह नहीं मालूम हुआ होता कि काले स्त्री-पुरुपों को विप देने की अपेक्षा बेच ढालने में अधिक लाभ है तो उन्होंने अफ्रीका को शरायियों की हड्डियों से ढका हुआ रेगिस्तान बना डाला होता । शराय के व्यवसाय में लाभ तो था, किन्तु गुलामों का व्यवसाय उससे भी अधिक लाभकारी था। इसलिए उन्होंने हरिशयों को जहाजों में भर-भर कर गुलामों की तरह बेचा और ख़ूब मुनाफा कमाया । यदि यह व्यवसाय कानूनन निपिद्ध न ठहराया गया होना तो शायद अबतक भी पंजीपति उससे विमुख न होते।
अवश्य ही इंग्लैंड के पूँँजीपतियों ने यह काम स्वयं अपने हाथों से नहीं किया। उन्होंने सिर्फ अपनी पूँजी इस काम में लगाई। यदि उन्हें शराब की बनिस्वत लोगों को दूध पिलाने में और लोगों को गुलाम बनाने की बनिस्बत ईसाई बनाने में अधिक मुनाफ़ा होता तो निस्संदेह उन्होंने दूध और बाइबिलें बेचने के व्यवसाय ही किये होते।
जय शराब की हद हो गई और गुलामों के व्यवसाय को भी इति हो गई तो उन्होंने मामूली उद्योगों को अपने हाथों में लिया । उन्होंने सोचा कि हब्शियों को गुलाम बना कर बेचने की अपेक्षा उनसे काम लेने से भी मुनाका हो सकता है। उन्होंने अपनी राजनैतिक सत्ता द्वारा ब्रिटिश सरकार को अफ्रिका के विशाल भू-भागों पर कब्जा करने और चहों के निवासियों पर ऐसे भारी-भारी कर लगाने के लिए प्रेरित किया जिन्हें वहाँ के लोग अंग्रेज़ पूँजीपतियों का काम किये बिना अदा नहीं कर सकते थे। इस तरह अंग्रेज पूँजीपतियों ने खूब रुपया कमाया। साम्राज्य का विस्तार किया। वे व्यवसाय के पीछे अपना झंडा और झण्डे के पीछे अपना व्यवसाय ले गए। परिणाम यह हुआ कि जिन देशों का थोड़ा