पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/११५

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१०८ समाजवाद : पूंजीवाद च्यवस्था है और सार्वजनिक व्यवस्था (अर्थात् समाजवाद) असफल । कारण, उससे मुनाफा नहीं होता । मूर्ख लोग भूल जाते हैं कि मुनाफा उन्हीं की गांठों में से आता है, इसलिए मुनाफे की वात जहाँ निजी पूंजीपतियों के लिए अच्छी है वहां उनके ग्राहकों के लिए खराब है । मुनाफा नहीं होता, इसका इतना ही अर्थ है कि अतिरिक्त मूल्य नहीं लिया जाता। पूँजी के अत्याचार पूँजीपतियों ने निजी पूँजी से भूखे लोगों को काम पर लगा कर उद्योग-धन्धों में क्रान्ति कर दी है। उन्होंने कुटिया में बैठे-बैठे हाथ-कर्षे ___पर कपड़ा वुनने वाले जुलाहे का काम अपने हाथ में ले लिया उद्योगो मे है और उसे चाप्प द्वारा संचालित खर्चीले यांत्रिक कर्षों वाली बड़ी-बड़ी मिलों में बड़े पैमाने पर करना शुरू कर दिया है। उन्होंने चक्की वाले की पनचक्की और पवनचक्की छीन ली है और उसके वजाय अपनी बड़ी बड़ी इमारतों में लोहे के बेलनों और शक्तिशाली इन्जिनों वाली मिलें खड़ी कर दी हैं। उन्हों ने लुहार के धन को हटा कर उसकी जगह 'ने' स्मिथ का आविष्कृत भारी धन चलाना शुरू कर दिया है जिसको हजारों लुहार मिल कर भी नहीं उठा सकते । उनके कारखानों में लोहे की भारी-भारी चहरे इतनी श्रासानी से कतरी जाती हैं और लोहे के मोटे-मोटे डंडे इतनी आसानी से काटे जाते हैं जितनी आसानी से अपने हाथ से काम करने वाला लुहार एक मामूली ढिव्वे का ढक्कन भी नहीं खोल सकता । उनके बनाये लोहे के भारी-मारी जहाज़ कलों के जोर से समुद्र में तैरते हैं। उनके फौलाद और कंकरीट से तले ऊपर बनाये हुये ऐसे-ऐसे मकान होते हैं जिन में सौ-सौ परिवार बड़े आराम से रह सकते हैं। उन्होंने उन में ऊपर जाने के लिये सिड्डियों की ज़रूरत नहीं रक्खी; खटोलों का प्रबन्ध कर दिया है जिन में बैठ कर उन में रहने वाले लोग सुखपूर्वक ऊपर चले जाते हैं और अपनी-अपनी