समाजवाद : पूँजीवाट 'अर्थात् सरकार नोट न छापे इसके लिए अपना प्रभाव खर्च किया। खराव राय की हमेशा जीत हुई । कारण, स्वयं सरकारों को भी रुपया देना था। वे सस्ते काग़ज़ी टुकड़ों में अपना कर्ज चुका कर खुश क्यों न होती! इस सबसे सभी समझदार श्रादमी इस परिणाम पर पहुंचेंगे कि रुपया इकट्ठा करना उसको बचाने का सुरक्षित तरीका नहीं है । यदि उनका रुपया तत्काल खर्च न हो गया तो वे कभी यह भरोसा नहीं रख सकते कि इस साल बाद या दस सप्ताह याद या युद्ध के दिनों में दस दिन या दस मिनिट बाद उसका मूल्य कितना रह जायगा? किन्तु दूरदर्शी श्रादमी कहेंगे कि 'हम तो अपना अतिरिक्त रुपया खर्च करना नहीं चाहते, बचाना चाहते हैं। यदि उनको कोई चीज चाहिए तो वह उस रुपये से खरीदी जा सकती है, किन्नु नब वह अतिरिक्त रुपया न कहलायगा । फिर यदि कोई आदी अच्छा भोजन करके उठा हो तो उसको यह सलाह देना बेकार भी होगा कि अपने रुपये का कुछ-न-कुछ उपयोग कर लेने के लिए वह फिर भोजन मंगवाले और उसे तुरन्त खाले । इससे तो यही अच्छा होगा कि वह उसे उठा कर खिड़की के बाहर फैंक दे। तो वे कह सकते हैं कि 'श्रच्छा, हम उसे खर्च भी कर लें और वचा भी लें 1 कोई ऐसा ही उपाय बतायो।' किन्तु यह असम्भव है । हाँ, हम यह कर सकते हैं कि उस अतिरिक्त रुपये को तो खर्च कर डालें और उससे अपनी श्रामदनी बढ़ालें। यदि खुद खा चुकने के बाद हमको कोई ऐसा श्रादमी मिल नाय जो एक साल के बाद हमको मुफ्त खाना खिला सके तो हम अपना थतिरिक्त रुपया उसको मुक्त खाना खिलाने में खर्च कर सकते हैं । इसका यह अर्थ हुथा कि हम अपना बचा हुया खाना ताज़ा हालत में दूसरे को मिला सकेंगे और फिर भी साल भर बाद ताज़ा खाना पा सकेंगे। ___ किन्तु हम अपना यह खाना ऐसे भूखों को नहीं खिला सकते जिनके खुद के भोजन का ही टिकाना न हो। वे अगले साल हमारे लिए भोजन कहाँ से लायंगे ? इसका भी इलाज है। हमें चाहे ऐसे भरोसे वाले भूखे
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