समाजवाद : पूँजीवाद के लिए श्रावश्यक हरएक वस्तु खरीद लेने के बाद जो रुपया बच रहता है वही अतिरिक्त रुपया है। यदि कोई पचास रुपया मासिक पर उस ढंग से रह सकता हो जिस ढंग से वह रहता है और रहने में सन्तुष्ट हो तथा उसकी प्राय पिचत्तर रुपया मासिक हो तो मास के अन्त में उसके पास पचीस रुपया बच रहेगा । वह उस हदतक पूँजीपति होगा । अतः पूंजीपति होने के लिए हमारे पास जीवन-निर्वाह के लिए थावश्यक से अधिक रुपया होना चाहिए। __ऐसी दशा में ग़रीव श्रादमी पूंजीपति नहीं हो सकता । ग़रीब अादमी वह है जिसके पास जीवन-निर्वाह के लिए श्रावश्यक से कम रुपया हो । यदि गरीव के पास इतना रुपया हो कि वह अपने बच्चों को ठीक प्रकार से खिला-पिला और पहिना भी न सके और न स्वस्थ रख सके तो उसे कभी नहीं बचाना चाहिए । खर्च करना न केवल पहिली श्रावश्यकना है, बल्कि पहिला कर्तव्य है। किंतु गरीव लोग भी बचाते हैं । इंग्लैण्ड के सेविंग बैंकों, इमारती संस्थाओं, सहयोग-समिनियों और सेविंग सर्टीफिकेटों में करोड़ों अतिरिक्त रुपया लगा है। यह सब रुपया श्रमजीवी वर्गों के नाम पर जमा मिलता है तो वहा विस्मयोत्पादक प्रतीत होता है। किंतु वह व्यवसायों में लगे हुए कुल रुपये की तुलना में इतना नगण्य है कि यदि धनिकों की पूंजी के साथ-साथ वह भी एक सार्वजनिक कोप में डाल दिया जाय तो उसके ग़रीव मालिक फायदे में ही रहेंगे। अंगरेजी जी का बहा भाग-ठस पूंजी का जो महत्व रखती है उन लोगों का अतिरिक्त रुपया है जिनके पास जीवन-निर्वाह के लिए काफी से अधिक रुपया है । मालिक को विना कष्ट पहुंचे वह स्वतः बच जाता है। अब यह प्रश्न उठता है कि पूँजी का उपयोग किस तरह किया जाय? क्या उसे ज़रूरत के वक्त के लिए ढाल रक्खा जाय ? अवश्य ही कोप के नोट, बैंक नोट, धातु के सिक्के, चैक बुक और बैंक । की वहियों में जमा नामेकी रक्रमें सुरक्षित रक्खी रहेंगी, किंतु यह सब चीजें हमारे लिए आवश्यक सामान, मुख्यतः भोजन के लिए कानूनी अधिकार मात्र हैं। मोजन, जैसा कि उपयोग
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समाजवाद : पूँजीवाद