पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/८१

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यह भी है ( ५४ ) सही दिशा में विकसित करना नीतिज्ञता है। जो संस्था राष्ट्रीय होने का दावा करती है वह कृषको की किर्मा भी मी मस्था के विरुद्ध नहीं हो सकती जिसका स्थप साम्राज्यवाद-विरोधी हो और कांग्रेस- विरोधी न हो। कॉगन राष्ट्रीय पैमाने पर जन-अान्दोलन किये बिना अपना ध्येय प्राप्त नहीं कर भकनी और उसको ऐमे वर्ग चेतना- युक्त सुभट कृषकों की मेवानों की आवश्यकता होगी जो राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए कितना भी त्याग और बलिदान करने को प्रस्तुत हों। अनः दोनों संस्थानों को एक दूसरे का शुभचिन्तक होना चाहिंय, और एक दूसरे को अपना पूरक समझना चाहिये । किमी के इराद कितने ही अच्छे क्यों न हों, दो संस्थानों के अस्तित्व से ही कुछ न कुछ खटपट हो सकती है, परन्तु यदि हम उन दोनों को एक दूसरे का पूरक समझे तो ममारे लिए उस खटपट मे डरने की कोई बात नहीं है। अतः यह और भी ज्यावश्यक है कि हममें से प्रत्येक कोई भी ऐसा कार्य न करने और बात न कहने का विशेष ध्यान रक्खे जिनसे कोई अवांछनीय परिणान हो । किसी कमेटी विशेष के पदाधिकारियों के विरोधी रवैये के कारण किसान-कार्य कर्ताओं को कांग्रेस की ओर से विमुख न हो जाना चाहिये। कुछ थोड़े से व्यक्ति ही कॉग्रेस नहीं हैं और यदि वे अनुचित व्यवहार करते हैं तो इसी कारण से हमको काँग्रेस के विरुद्ध नहीं हो जाना चाहिये । कॉग्रेस अाखिर जनता का संस्था है, उसके साथ जनता का भाग्य बँधा हुअा है, और यदि कुछ व्यक्ति कुछ स्थानों पर उसे अपने अनुरूप कार्य नहीं करने देते तो हमें अपना धैर्य खोकर यह नहीं सोचने लग जाना चाहिये कि काँग्रेस हमारी संस्था नहीं है ।