पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/५९

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और उन्होंने पद ग्रहण के विरुद्ध निर्णय किया था। परन्तु नई स्वराज्य- पाटी ने ऐसी कोई नीति नहीं घोषित की है। यह सष्ट है कि वर्तमान् नीति के निर्धारक पहले लोगो के पदचिहो पर नहीं चले हैं। अबकी स्वराज्यपाटी निश्चय ही एक सुधारवादी संगठन है । उसके पास कोई विनकारी हयकरडे नहीं हैं। पदग्रहण के महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर वह एकदम चुर है । उसके कार्यक्रम और नीति का उदारदलियो के कार्यक्रम और नाति में विभेद करना कठिन है । यह मत्य है कि उसका विचार कांग्रेस के रचनात्मक कार्यक्रम को अपनाने और ग्राम-गठन करने का है । परन्तु यह समझना कठिन है कि ग्राम संगठन ने, उनके कार्यक्रम का वनाने वाली का तात्पर्य क्या है ? क्या वे ग्रामों मे नेवा का कार्य करना और आदर्श ग्रामों की स्थापना करना चाहते है, जैपा कि गवर्नमेण्ट देश के कुछ भागों में कर रही है ? अथवा क्या वे ग्राम-राज्यों को पुनर्जीवित करना चाहते है ? यह ध्यान देने योग्य बात है कि कांग्रेप के समान वे भी मजदूर्ग से कतराते है । वे विदेशो में प्रचार के लिए कार्यालग बनायेंगे, परन्तु अपने देश में धारामभाओं और स्थानीय परिषदो के बाहर गष्ट्रीय भाँगो की पूर्ति के लिए क्या साधन जुटायेंगे ? राष्ट्रीय मांगो को मूर्त रूप देने के लिए जो विधान- परिषद वे बुलाना चाहते है, वह मृत सर्वदलसम्मेलन का ही दूसरा संस्करण प्रतीत होती है। पगिडत जवाहरलाल नेहरू ने जब विधान परिषद की जनतन्त्रीय माँग रक्खी थी, तब उनके मन में जो योजना थी वह बिलकुल भिन्न थी। हमारे स्वराजो मित्रो ने विधान परिषद का नाम तो लिया है, परन्तु उन्होंने उस सारी चीज को भोली बना दिया है। मेरे विचार से कांग्रेस के भीतर एक केवलमात्र सुधारवादी दल की स्थापना कांग्रेस के लिए अहितकर ही होगी, जब तक कि वह दल कांग्रेस का एक अभिन्न भाग बनकर रहने और उसके द्वारा अनुशासित होने के लिए तैयार न हो ।