पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/५०

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गया है कि वह पूँ जीशाही से मेल नहीं खाता; प्रचुरता के में समाज- वादी व्यवस्था ही हो सकती है ।" जब लाभ का उद्देश्य हट जाता है, तब सब संस्थाएँ पुनर्निर्मित होती हैं, और समाज लाभ कमाने के लिए नहीं बल्कि उपयोग में लाने के लिए उत्पादन करता है। राज्य उत्पादन और वितरण की व्यवस्था एक योजना के अनुसार करता है। 'प्रत्येक को 'आवश्यकतानुसार मिले' यह वस्तुओं के विभाजन का अन्तिम ध्येय है, परन्तु इसकी प्राप्ति एक साथ नहीं हो सकती। कुछ प्रचलित भ्रान्तियाँ मैं समझता हूँ कि समाजवाद के विषय में प्रचलित कुछ भ्रान्तियों को निवारण यहाँ अप्रासंगिक न होगा। ये भ्रान्त धारणाएँ समाजवाद के विरोधियों मे ही नहीं, उसके अनुयायियों में भी फैली हुई हैं। इनमें मे बहुत-सी तो उत्पन्न ही नहीं हो सकती यदि हम यह यान खखें कि हम वैज्ञानिक समाजवाद का अनशीलन कर रहे है, कवियों के समाजवाद का नहीं । हम यह मान बैठते है कि रूसी समाजवाद श्रादर्श रूप है और हमारी सम्पूर्ण आलोचना इसी दृष्टिकोण से होती है। यदि हम यह ध्यान रखते कि समाजवाद एक लम्बी विकास-खता का नाम है और उसकी एक दिन में प्रतिष्ठा नहीं हो सकती तो हम इस भ्रान्ति में न पड़ते। यह स्वाभाविक है कि प्रार्गम्भक अवस्था मे समाजवाद के ऊपर अपनी जननी पूँजीवादी व्यवस्था का कुछ प्रभाव रहे । मै उन प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास नहीं करूँगा जो रूस के विषय में प्रायः पूछे जाते है ; परन्तु मैं समाजवाद से सम्बन्धित एक दो बातो के विषय में प्रचलित भ्रान्तियो के बारे में अवश्य कुछ शब्द कहना चाहूँगा। इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या जो मार्स की एक बड़ी मपत्त्वपूर्ण