पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/३२

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का उनलन किया जा सके । हाँ, यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हो, तो वह अवश्य एक समाजवादी राष्ट्र की नं.व बालने का प्रयत्न करेगा। परन्तु यदि इसके लिए अवसर न हो, तो वह केवल इसीलिए अन्य वर्गो का विदेशी सत्ता के विरुद्ध साथ देने से इन्कार करके स्वातन्त्र्य प्रगति में ड: न बनंगा । उसका आचरण वस्तुतः अपने सिद्धान्तो के अनुकूल ही हं.गा, क्योंकि एक पराधीन जाति के लिए राजनैतिक स्वतन्त्रता समाजवाद तक पहुंचने की एक श्रावश्यक सीढी है। हम यह सोच सकते है कि वर्तमान भारतीय परिस्थितियों मे, यह सम्भव है कि दोनों कान्तियाँ साय- मार है। सकें। परन्तु इन मामलों में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। बहुत कुछ तो स्वातन्त्र्य संघर्ष के नेतृत्व की विशेषताश्री पर निर्भर करेगा। यदि नेतृत्व समाजबादी रंग का हुआ और दि उसमें साहस और विवेक की प्रचुर मात्रा हुई तो वह अवश्य अनुकुल परिस्थिति से लाभ उठा लेगा। परन्तु यह निश्चयपूर्वक नहा कहा जा सकता कि स्वतन्त्रता मिलने के माथ ही हमारे देश में, गमाजवाद स्थापित हो जायगा अथवा नहीं । कुछ भी हो, पूंजीवादी जनतन्त्र सर्व प्रकार में विदेशी शासन की दासता से तो अच्छा ही है। उमलिए जो समाजवादी आजादी की लड़ाई को मुख्यतः निम्नम यवर्ग के व्यक्तियो की बताकर उसय विमुम्ब रहता है, वह निश्चय ही संकीर्ण दग्विाला है। भारत को वर्तमान परिस्थितियों में समाजवादी काग्रेस के भानर रह कर अच्छा कार्य कर सकते हैं, और स्वतन्त्रता के संघर्ष का समाजवाद से योग कर सकते है। वर्ग-युद्ध के विषय में हमारं अपर यह आरोप लगाया जायगा कि वर्ग-कलह के सिद्धान्त का प्रतिपादन करके हम वर्ग-वैमनस्य को जन्म देंगे । यह भी कहा जायगा कि.