पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२८९

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के लिए अपने श्रापको स्वतन्त्र समझते हैं, और नवीन अनुभवों के प्रकाश में सदैव अपने विचारों का संशोधन करते रहते हैं। वे जानते हैं कि वस्तुस्थितियाँ सिद्धान्तों से अधिक बलशालिनी होती हैं। पिछले पच्चीस वर्षों के इतिहास ने उनको यह जता दिया है कि भौतिकवाद अव भी एक जीवित शक्ति है, और प्रत्येक युद्ध असम्भावित क्षेत्रों में भी उसे बढ़ावा दे देता है | जो लोग समय- अमगय क्रान्तिकारी शब्दसमूह उगलते रहते हैं, और सदैव यही राग अलापते रहते हैं कि देश में क्रान्ति का प्रसव होने वाला है, उनके लिए जवाहरलाल जी के पास थैर्य नहीं है । वे अनिश्चित भविष्य के लिए तत्कालिक सम्भावनायों का बलिदान कभी नहीं करेंगे । इसके अतिरिक्त, पिछले कुछ सालों में उनका प्रथम समाजवादी पावेश निश्चय ही, कुछ कम हो गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि हाल की विश्व-घटनाओं ने उन्हें गम्भीर और सतर्क बना दिया है, और इसके फलस्वरूप अब उनमें युवक धर्मयोद्धानों का सा वह यातुर उत्साह नहीं दिखाई देता, जिसका उन्होंने सन् १६३६ ३८ में परिचय दिया था। इस प्रकार वे साम्प्रदायिक नहीं हैं । उनका अपना विश्वास है, जो लौकिक है, अलौकिक नहीं । उनका दृष्टिकोण वैज्ञानिक है और वे पारलौकिक दर्शन और रहस्यवाद में विश्वास नहीं करते । अतः राजनैतिक प्रश्नों को वे धार्मिक अथवा भावनात्मक दृष्टि से नहीं देखते । धर्म के संस्थावादी स्वरूप से उन्हें घृणा है क्योंकि वह प्रति- क्रिया का गढ़, और जो है, उसे बनाये रखने का पक्षपाती होता है । समाज में उसका कार्य सामाजिक असमानताओं को निम्न वर्गों के लिए कम असह्य बनने का रहा है । परन्तु धर्म के उस शुद्धतर स्वरूप से उनका कोई झगड़ा नहीं है, जो व्यक्तियों को शुभकर्मों की ओर प्रेरित करता है। वे सामाजिक सत्कर्म में विश्वास करते हैं, और