पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६८

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( २४१ ) इस भयंकर दमन के कारण जनता को काठ सा मार गया और उसकी भावनायें कुण्ठित होगई । परन्तु यह कुण्ठित मनः स्थिति अधिक दिन न चली क्योंकि राष्ट्र ने एक ऐसा स्वप्न देख लिया था जिसके संस्कार दमन और पुलिस जुल्म की पराकाष्ठा से भी नही मिट सकते थे, और जैसे ही युद्ध समाप्त हुआ, लोग फिर अपनी साधारण मनः स्थिति पर श्राने लगे। आजाद हिन्द फौज का मुकद्दमा और जल-सेना की हड़ताल अर्थपूर्ण घटनायें थी, और उन्होंने यह स्पष्ट प्रभावित कर दिया कि विद्रोह की भावना मरी नहीं थी बल्कि युद्धोत्तर काल की विश्व स्थिति की भूमिका में वस्तुतः फिर प्रज्वलित हो उठी थी। सैनिक शासन के नीचे, युद्धकाल में जो शक्तियाँ दबाकर रखी गई थीं, वे फूट पड़ीं, और बहुत से पराधीन देशों में जन-विप्लव सहज रूप से फट पड़े। यह समय वास्तव में क्रान्तिकारी और महती सम्भावनायें लिए हुये है । सब ओर ब्रिटिश सामाज्य चरचरा कर टूट रहा है । हमें अपने अधिकार से ब्रिटिश शक्ति बंचित नही कर रही है, बल्कि हमारी कान्तिकारी संकल्प की कमी ही, इस देरी का कारण है। सन् १६४२ का शानदार संघर्ष ८ अगस्त के महत्वपूर्ण प्रस्ताव का परिणाम था | उस प्रस्ताव में कांग्रेस के ध्येय की परिभाषा और उसकी नीति की व्यवस्था की गई है। उसका लक्ष्य राष्ट्रीय स्वाधीनता प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि उसमें जिस नवीन आर्थिक और राजनैतिक ढांचे की कल्पना की गई है, उसमें एक नवीन समाज की नींव रखने की अावश्यकता भी व्यक्त की गई है । वह सम्पूर्ण सत्ता जनता को सौंपना चाहता है । वह अन्तर्राष्ट्रीयता की उच्च भावना से अोतप्रोत है। उसमें यह स्पष्ट कर दिया गया है कि स्वतन्त्र भारत आत्म-सीमित नहीं रहेगा, वरन् संसार को सहकारी आधार पर संगठित करने में अपना भाग और कर्तव्य पूरा