पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२६०

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( २३३ ) जनता को स्वयं सत्ता अपने हाथ में लेनी होगी। अन्य वर्गों के जिन व्यक्तियों ने अपने आपको जनता के साथ मिला दिया है, वे केवल इस कार्य में उसकी सहायता कर सकते हैं: वे सत्ता को उपहार की तरह उसकी भेंट नहीं कर सकते । इस तथ्य को यदि हम मान लें, तो हमें अपनी संस्था का स्वरूप बदलना पड़ेगा। हमें कांग्रेस के द्वार कृषकों और श्रमिकों के लिये खोल देने पड़ेंगे और जो तत्व जनता के हितों के विरोधी हैं, उन्हें हटाना पड़ेगा। जनता के हित सर्वोपरि बनाने होंगे और प्रत्येक हित जो उनके विरुद्ध पड़ेगा, हमें दूर करना होगा। यदि ऐसा किया जाय, तो वर्ग-संस्थायें अनावश्यक हो सकती हैं । परन्तु एक प्रमुखतः मध्यवर्गीय सस्था से ऐसा करने की पाशा नहीं की जा सकती। इसलिये कृषकों और श्रमिकों को अपने अलग संव बनाने के लिये प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये । और उनके अपने स्वतन्त्र संगठन पर नियन्त्रण रखने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिये। उन्हें अपने आर्थिक वर्ग हितों की सुरक्षा के लिए संगठित होने दिया जाना चाहिये । उनकी माँगें कांग्रेस के घोषणा-पत्र अथवा नीति और कार्यक्रम में सम्मिलित की जानी चाहिये । इसी प्रकार कांग्रेस जनता की आर्थिक माँगों को ध्वनित कर सकती है और उनके हित का सच्चा प्रतिनिधित्व कर सकती है। कांग्रेस इन संस्थाओं को राजनैतिक शिक्षा देकर उनसे आर्थिक कार्यक्रम ले सकती है । जनता की राजनैतिक और आर्थिक मुकि केवल ऐसे श्रादान-प्रदान से ही हो सकती है। जनता को सब प्रकार के शोषण और उत्पीड़न से बचाया जाना चाहिये, और समाज-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध श्रात्मरक्षा के लिए संगठित किया जाना चाहिये । इस प्रकार हम देहात में ऐसे स्थल बना सकेंगे जो जनतन्त्र के लिए शक्ति-स्थान होगे।