पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२३५

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के उपरान्त भी अपने ऊपर विजय पाने का अधिक महत्वपूर्ण और गहरा सवाल रह जाता हैं।' कथनी और करनी अाइये, हम दे वे कि ऐमी विजय प्राप्त हो चुकी है अथवा नहीं। इसमें सन्देह नहीं कि मित्रराष्ट्रीय सरकारों ने समय-समय पर मानव और मानवता के प्रति संवेदना और ऊँचे भावों से भरे व काव्य प्रकाशित किये हैं। अटलांटिक चार्टर और चार स्वाधीनताश्री के शानदार शब्द हमारे सामने हैं। सान फ्रांसिस्को काम के अधिकार-पत्र में स्त्री पुरुषों के और छोटे बड़े राष्ट्रों के समान अधिकारों में फिर से विश्वास प्रकट किया गया है, और हिल मिल कर एकता के साथ रहने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शांति स्थापित हो सके । ये वास्तव में उच्चाशय की वाते हैं, परन्तु हम सब जानते हैं कि व्यवहार में किस प्रकार मित्रराष्ट्रीय सरकारे उनके प्रति झूठी सिद्ध हुई हैं । जिधर देखो जोर-जबरदस्ती की राजनीति का वोलवाला है और कामचलाऊ तरीकों ने सिद्धांतों का स्थान ले लिया है । जैसे ही यूरोपीय युद्ध का अन्त निकट अाता दीखने लगा, चर्चिल साहब कहने लगे कि युद्ध सैद्धांतिक नहीं रहा है । मित्रराष्ट्रों में जो आपसी दरार है वह वढ़ती जा रही है और युद्ध-पूर्व के पारस्परिक संशय फिर अपना सिर उठा रहे हैं । एकतरफा निर्णय वार २ किये जा चुके हैं । सामाज्यवादी नोति बनी हुई है सम्मिलित राष्ट्रों (United Nations) द्वारा स्वीकृत विश्व सुरक्षा योजना में शत्रु से छीने हुये और संरक्षित (Munddated) प्रदेशों की देख रेख के लिये एक अभिभावक्र-परिपद (Trustee- ship Countil) बनाई गई है जो उन प्रदशों को अपने प्रबन्ध में