पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२२७

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( २०० ) ऐसे समय में, जबकि भारतीय अखाड़े में राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए होड़ मची हुई है, और प्रत्येक समुदाय उसका अधिक से अधिक भाग हथिया लोने के लिए जोर लगा रहा है, साम्प्रदायिक नोंक झोंक के जोश में मूलभून मसलों के दृष्टि से अोझल होजाने का भारी भय । ऐसे वातावरण में प्रजातन्त्र का दम घुट सकता और जनसाधारण को मुलाया जा सकता है । अतः लोगों को यह याद दिला देना आवश्यक है कि वर्तमान विश्व-स्थिति की भूमिका में, स्वतन्त्रता का हित-साधन तभी हो सकता है जब हम वृहद् सामाजिक प्रयोगों के लिए और विस्तृत अाधार के जनतन्त्र के लिए अपनी प्रस्तुतता दिखलावें । स्वतन्त्रता को वे लोग न प्राप्त कर सकते और न स्थिर रख सकते हैं, जो दब्बू हैं जो संकीर्ण जाति पाँतिवादी दृष्टिकोण वाले हैं, जो बड़े परिवर्तनों से डरते हैं और जिनमें यह देख लेने की मूझ बूझ नहीं है कि अागन्तुक भविष्य हमसे क्या चाहता है। हम या तो अपने मार्ग पर लम्बे कदम आगे बढ़ा सकते हैं या उल्टे कदम पीछे लौट सकते हैं । इसमें बीच का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता । कुछ ऐसे विचार हवा में उड़ रहे हैं, जिनकी आलोचनात्मक समीक्षा होने की आवश्यकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम विचारों से नही बल्कि नारों से प्रभावित होते हैं । परन्तु जब तक हम अपने भ्रम दूर नहीं करेंगे, तब तक निर्भान्त विचार करना सम्भव न होगा। एक ऐसा नारा जिसने लोक-मानस को प्रभावित किया है योजनात्मक अर्थव्यवस्था (plaimed (850110}}}) का है । लोगों को यह विश्वास होने लगा है कि ऐसी अर्थ-व्यवस्था में कोई रहस्यमय शक्ति है । परन्तु सचाई यह है, कि वोजनात्मक अर्थव्यवस्था स्वयं अपने में, एक निरर्थक वस्तु है |