पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२२२

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( १६५ ) अलापना आवश्यक हो गया । वे अब कहने लगे कि युद्ध जनता का हो गया है और इस कारण उसमें योग देना चाहिए । जनतावादी मोर्चे की नीति ने संसार के साम्यवादियों को जर्मनी द्वारा रूस पर अाक्रमण होने की अवस्था में इस प्रकार की कठिवाई करने के लिए तैयार कर लिया था | जनता की लड़ाई शब्द-समूह का प्रयोग जान बूझकर विचार-विभाग उत्पन्न करने के लिए किया गया है। इसका वास्तविक अर्थ है फासिष्ट राज्यों के विरुद्ध जनतन्त्रों की लड़ाई, परन्तु जिन शब्दों में यह विचार व्यक्त किया गया है उनसे यह असत्य धारणा उत्पन्न होती हैं कि अपने अधिकारों को पाप्त करने के निमित्त जनता इन युद्ध को चलाने में अगुना बन रही है । 'लोकप्रिय मोर्चे' के समय से यह शब्द-समूह फिर से प्रचलित हो गया है । जनतावादी- मोर्चा-सरकार (people's front government) के स्वरूप के बारे में कहा गया था कि वह न बुर्जुश्रा सरकार है और न श्रमिकवर्गीय, अपितु जनता की सरकार है अर्थात् नाजी-विरोधी राजनैतिक दलों का गुट है । जो युद्ध फासिष्टों के विरुद्ध फालिष्ट- विरोधी तत्वों द्वारा लड़ा जायगा-चाहे वह किसी भी (भले ही बुर्जुश्रा) नेतृत्व में क्यों न हो-वह जनता का युद्ध होगा। अतः उनका विचार है कि युद्ध को सरलता से प्रजातन्त्रीय अथवा जनता के युद्ध में परिणत किया जा सकता है यदि सरकारें वास्तत्र में फासिष्ट-विरोधी हों और इसकी पहिचान यह है कि इस युद्ध में वे सोवियत रूस का साथ देने को तैयार हैं। अाक्रमण होने की अवस्था में, लोग सम्भवतः अाक्रान्ना से पितृभूमि की रक्षा करने में प्रवृत्त होंगे और उनकी सरकार शत्रु से डट कर लड़ना चाहे तो उसका साथ देने की सोचेंगे। क्रांतिवादी समाजवादियों और साम्यवादियों का यह काम है कि