पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२०२

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( १७५ ) युद्ध-विरोधी रवैये पर पुनर्विचार करने, और कम से कम नाजी पक्षपाती लगने वाले कार्यों से बचने की अपील की। उसने विशेषकर उनको यह बताया कि सब साम्यवादी पार्टियाँ युद्ध-विरोधी दिशा में एकसी नहीं चल रही हैं और जहाँ ब्रिटिश और फ्रांसीसी साम्यवादी अपने यहाँ की जनता से कह रहे हैं कि "मुख्य शत्रु घर पर हैं' अर्थात् मित्रराष्ट्र है, वहां जर्मन साम्यवादियों के लिए "मुख्य शत्रु बाहर है" अर्थात् मित्रराष्ट्र हैं। उसने इस बारे में कम्यूनिस्ट पार्टी के 'डाई बैल्ट नामक एक मुखपत्र मे २ फरवरी सन १६४० को जर्मन साम्यवादी पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के सदस्य वाल्टर अल ब्रिस्ट के द्वारा लिखे गये एक लेन का भी जिक्र किया जिसमें निम्नलिखित वाक्य पाया है :- "यह युद्ध-नीति (अर्थात् मित्रराष्ट्रों के पक्ष लेने की) और भी अधिक अपराधपूर्ण है क्योंकि ...(ब्रिटेन)....संमार की सबसे अधिक प्रतिक्रियावादी शक्ति है।" अलब्रिट जर्मन साम्यवादियों से यह नहीं कहता कि शत्रु घर पर है। वह जर्मन जनता से उठने और क्रान्तिकारी कार्रवाई द्वारा राज्य-सत्ता को उलट देने की अपील नहीं करता। (कोई यह न समझ ले कि यह बात प्रकाशन की कटिनाइया के कारण है, क्योंकि स्मरण रहे कि "डाई दैल्ट" स्वीडन में प्रकाशित होता है।। इसके विपरीत, वह उनसे कहता है कि “निटेन विश्व की सबसे अधिक प्रतिक्रियावादी शक्ति है।" "डेली वर्कर (१ फरवरी १६४०) ने भी सम्पूर्ण दोष ब्रिटेन पर थोप दिया और ऐसा ध्वनित किया कि हिटलर का पक्ष तो टीक और युक्तियुक्त है, और सारी मुसीबत चैम्बरलेन और रेनो की दुष्टता के कारण है । "डेली वर्कर' का निम्न अवतरण मजेदार है :-