पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/२०

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सम्मेलन के अवसर पर भारतभर के किसान कार्यकर्ताओं का भी एक सम्मेलन हुअा जिसके फलस्वरूप अखिल भारतीय किसान सभा की उत्पत्ति हुई । नरेन्द्रदेवजी दो बार इसके प्रधान चुने जा चुके हैं- एक बार सन् १९३६ के गया अधिवेशन में, और दूसरी बार सन् १६४२ में बिहार के मुजफ्फरपुर परगने के विदोल नामक स्थान में हुए अधिवेशन में। उन्होंने "संघर्ष" नामक एक हिन्दी साप्ताहिक भी निकाला, जिसने अच्छी ख्याति प्राप्त की। उसके सम्पादक मण्डल में स्वयं के अतिरिक्त सर्वश्री मोहनलाल गौतम, रमाकान्त श्रीवास्तव, और प्रोफेसर बी० पी० सिनहा थे । कांग्रेस समाजवादी पार्टी के निर्माण के साथ ही, नरेन्द्रदेवजी ग्रान्तीय राजनीति की परिधि में से निकलकर अखिल भारतीय क्षेत्र में आगये । उन्हें अप्रयास और बिना मांगे ही, मान और प्रतिष्ठित पद प्राप्त हुए हैं । अनेक बार तो उन्होंने उनकी अोर से धीरे से मुंह मोड़ लिया है। लखनऊ विश्वविद्यालय का कुलपति पद, अपने प्रान्त में मंत्रि-पद, और कई बार कांग्रेस कार्य समिति में स्थान ग्रहण करना उन्होंने अस्वीकार किया है। नरेन्द्रदेवजी भारतीय इतिहास के विख्यात धुरंधरों में से एक हैं | यह विलकुल स्वाभाविक प्रतीत होता है, क्योंकि उनके अपने नगर में ऐतिहासिक स्मृतियों और आधुनिकता का अद्भुत सम्मिलन है। नरेन्द्रदेवजी सन् १८८६ में सीतापुर में पैदा हुए और जब वे केवल दो वर्ष के थे, तब से उनका परिवार फैजाबाद जाकर रहने लगा। वहां से अयोध्या की प्राचीन नगरी जो राम की जन्मभूमि है और जिसके साथ रामायण की हृदयस्पर्शी घटनाये सम्बद्ध हैं केवल तीन मील दूर है । फैजावाद स्वयं भी एक समृद्ध नगर और अवध की राजधानी था जब अक्षरेजों ने उसपर अधिकार किया।