पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१८४

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( १५७ ) कामरेड दत्त और ब्राडले ने जनवरी सन् १६३६ में अपनी प्रसिद्ध रचना "भारत में सामाज्यवाद-विरोधी जन-मोर्चा" लिखी जिसमें उन्होंने संयुक्त मोर्चे के तरीके को एक नितान्त नये रूप में प्रयुक्त करने की सलाह दी और भारतीय साम्यवादियों से कहा कि वे "इण्डियन नेशनल कांग्रेस का आधार लेकर साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियों का हत्तम मोर्चा बनाये और इस ध्येय की प्राप्ति के लिए कांग्रेस को सहारा और शक्ति प्रदान करें ।" यह निम्सन्देह एक स्वस्थ दृष्टिकोण या और भारतीय साम्यवादी पार्टी ने सन १६३ ॥ में इस अपना लिया। उस समय से भारतीय साम्यवादी कांग मी एकता की बाते करते रहे हैं। परन्तु युद्ध और कान्तिकारी भङ्कट के समय में उनकी नाति फिर बदल गई है और व अपनी पुरानी स्थिति पर फिर पहुँच गये प्रतीत होते है । कांग्रेसी नेतृत्व पर प्राघात किये जा रहे हैं और उसको निकम्मा सिद्ध करने के प्रयत्न किये जा रहे है। उनकी नीति गान्धीवादी नेतृत्व की नीति को प्रभावित करने और उसे संघर्ष में आगे बढ़ाने की नहीं, बल्कि उन नेतृत्व के प्रभाव को चूर्ण करके उसे जनता से विलग करने की है। जनता का युद्ध मोर्चा बनाने के लिए. उस नेतृत्व का खोवलापन मार्वजनिक रूप से दर्शा देना साम्यवादियां का प्रथम कार्य कहा जाता है। इसको वे नीचे से संयुक्त मोर्चा बनाना कहते हैं-- अर्थात् नेताओं के स्थान पर उनके अनुगामियों से ऐक्य स्थापित करना । परन्तु तनिक भी बुद्धि रखने वालों को यह स्पष्ट हो जायगा कि कांग्रेसी मनोवृत्ति वाले जनों को संयुक्त संघर्ष के लिए उन व्यक्तियों के सहयोग के बिना साथ ले लेना असम्भव है जिनमें उनका विश्वास है और जिनकी ओर वे पथ-प्रदर्शन के लिए देखते हैं।