पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१८०

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भारतीय संघर्ष (१६४०) भारत और विश्व के घटना क्रम से हमार देश में शीघ्र ही म्यानन्य-संघर्ष होने का प्राभाम मिलता है। पग पग करके हमारे राष्ट्रीय नेताओं को ब्रिटिश साम्राज्यवाद मे अन्तिम संग्राम करने के लिए तैयारी करनी पड़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत की अग्रगामी शनियाँ क्या करे ? वह कौनमा नानि है जिससे राष्ट्रीय नव अधिक मजबूत बने और मामाज्यवाद को भागने के लिए बाध्य होना पड़े ? क्या राष्ट्रीय नेतृत्व को उसकी पिछली और वर्त- भान असमर्थता के लिए बुरा कह कर सघर्ष को विच्छिन्न करना अं वस्कर है, अथवा उसका साथ दे कर सम्पूर्ण कॉग्रेस को यवर्ष में लाकर खड़ा कर देना ? कपा फल पद मंबर के लिए अधिका- श्रिक तैयार रहने से हमारा नेतृव र ढ़ नहीं बनंगा । आइये, हम इन प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए अपने देश की अग्रगामी शक्तियों की नीति और कार्यक्रम की पर्यालोचना करें । हमारे देश के वामपक्षियों के चार विभिन्न समूह हैं । उनका दृष्टिकोण भारतीय स्वाधीनता के लिए अविलम्ब संघर्ष छेड़ने के प्रश्न पर एक सा नहीं हैं । इभ महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर उनमें तीन मतभेद हैं।