पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१२९

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(१०२) अथवा भिन्नता का व्यवहार न होने दे। यह सिद्धान्त रक्या गया है कि भारत और ब्रिटेन अपनी व्यापारिक समस्या पर परस्पर आदानप्रदान के भाव में मांचे। ब्रिटिश भारत में राज-नियमों द्वारा ब्रिटिश जहाजों के भाथ किमी प्रकार का पृथकना का व्यवहार न होगा। ब्रिटेन में संस्थापित कम्पनियों को भारत में व्यापार करने समय कुछ मामलों में भारतीय कानून के मुद्दों की पूर्ति करने की आवश्यकता न होगी, यद्यपि विधान की निधि के पश्चात् उद्योग अथवा व्यापार प्रारम्भ करने वाली कम्पनियों को भारतीय कानून के अनुसार ही संस्थापित किया जा सकेगा और गज्य की सहायता प्राप्त करने के योग्य बनने से पहिले उन्हें और भी कुछेक शती का पालन करना पड़ेगा। विधान में प्रस्तावित परिवर्तनों के कारण वार्षिक व्यय बढ़ेगा और भारतीय टैक्स देनेवाले पर और अधिक भार पड़ेगा। जिन प्रान्तों का व्यय प्राय से अधिक होगा उनको संघीय प्राय में मे पूरककोप देना पड़ेगा और संघीय न्यायालय प्रान्तीय स्वायत्न शासन और धारासभायां और मतदाताओं के विस्तार के कारण भी शासन का प्रावरीक व्यय बढ़ेगा। इन नाम-मात्र के विधान से बम करदाताओं पर और अधिक बोझ बढ़ेगा और हमारी दासता की शृखलायें और भी दृढ़ हो जायेंगी। प्रान्तीय साधन इतने अल्प होंगे कि कोई भी भारतीय मंत्री राष्ट्र-निर्माण के विभाग विकसित करने में समर्थ न हो सकेगा | नये विधान की समालोचना समाप्त करने से पहले यह आवश्यक है कि हम नई योजना के श्रोर प्रस्तावों पर दृष्टि डालें। मेरा मतलब है अदन को ब्रिटिश सरकार को दे देने और बर्मा को भारत से पृथक कर देने के प्रस्तावों से | अदन का ब्रिटेन के लिए बड़ा सामरिक