पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/१२३

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संघ की स्थापना में कठिनाइयों स्पष्ट है । भारतीय रियासते ब्रिटिश भारत के प्रान्तों से स्वरूप और दजे में बिलकुल भिन्न हैं और वे उन शता पर संघ में शामिल होने को तैयार नहीं है जो प्रान्तों पर लाग की जायेंगी। फिर भी असमान इकाइयों का मंघ बनाने का प्रस्तात्र ग्वा गया है और भारी कठिनाइयों पर चूना पोत दिया गया है क्योंकि उससे सामाज्यवादी हितों की सिद्धि होती है। भारतीय वद्यानिक सुधारों के लिए बनाई गई संयुक्त पार्लियामेंन्टीय कमेटी के शब्दों में केन्द्रीय धारामभा और कार्यकारिणी (Execut is te) में शाजारों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति पर गम्भीरता से सब बातों का ध्यान रखते विचार किया जायगा । राजाओं ने सदैव सब मामलों में बड़ी दिलचस्पी ली है। जिन गम्भीर मामलों की उपर्युक्त उद्धरण में चर्चा की गई है व फौज के बजट के ऊपर गवर्नरजनरल और वारासभा में तनातनी हो जाने के सम्भावित खतरे मे सम्बन्ध रखते हैं। कमेटी ने यहाँ तक कह डाला है कि केवल ब्रिटिश भारत के संघ में केन्द्र को उत्तरदायी रूप देने का प्रश्न ही नहीं उटना । विधान निर्माता सबसे अधिक निरापद मार्ग पर चले हैं और उन्होंने विधान को सब प्रकार से अनुकूल बना लिया है | चारों ओर से विविध प्रकार से मुरक्षित इस विधान को पर्याप्त शासनाधिकार देने वाला बताना मखोल करना है। प्रान्तीय क्षेत्र में भी उन प्रान्तों में द्वि-परिषदीय धारासभायें होगी जहाँ ब्रिटिश शासन की विशेष रचना जमीदारी प्रथा प्रचलित है। दूसरे चैम्बरों की व्यवस्था इसलिए की गई है जिससे सम्पन्नवर्ग किसी भी ऐसे कानून को विलम्बित परिवर्तित अथवा अस्वीकृत कर सके जो उसकी सम्मति में ठीक न हो अथवा जो उसके अथवा सामाज्यवाद के हितों पर आघान करता हो ।