पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/११५

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( 55 ) की नीति पर चलती तो ग्राज चीन के छटे भाग पर आधिपत्य करना उसके लिए मम्भव न होता । अलग रहने की नीति का अनिवार्य परिणाम यह होता है कि पार्टी जन समुदाय से बिछड़ जाती है और शीच ही एक संकीर्ण जड़ाभूत समुदायमात्र रह जाती है। जो पार्टी राष्ट्रीय अान्दोलन पर कब्जा करना चाहती है उसे तो सभी वर्गों के पाम अपने सदस्य भेजने पड़ेंगे और इसी प्रकार उसका गजनीतिक प्रभाब बढ़ सकता है। नमाजवादियों को तो जहाँ जनसमूह है। वहा होना चाहिये और सामान्यवाद के विरुद्ध और जनहित मे प्रत्येक यवर्ण मे आगे रहना चाहिये । कांग्रेस को भी चाहिए कि वह श्रमिकों के प्रति उदासीनता के स्वयम को क्रियात्मक महानुभूति में परिवर्तित करके अपना प्रभाव बढ़ाए। उसे ट्रेड यूनियन काग्रेस की छत्रछाया में ट्रेडयूनियन बनानी चाहिये और कृषक वर्ग को एक दुर्धर्ष साम्राज्यवाद-विरोधी शक्ति बनाने के लिए कदम उठाना चाहिये । उसे अान्दोलन की नींव को अधिक विस्तृत बनानी चाहिये, और जो वर्ग क्रान्ति के मुख्य अवलम्ब हैं, उन्हें राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लेने के लि" टीक प्रकार मंगठित करना चाहिए । अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अपने एक गत कालीन प्रस्ताव में यह मान लिया है कि जन-समुदाय का शोषण तब तक नहीं रुक सकता, जब तक सामाजिक ढाँच से क्रांतिकारी परिवर्तन न किया जाय । जब हम कांग्रेन से वर्ग-संघर्ष की व्यूहरचना करने के लिए कहते हैं, तो हम केवल उससे उस प्रक्रिया का श्रीगणेश कराना चाहते हैं जो कभी न कभी परिवर्तन ला ही देगी । यह परिवर्तन उन्ही वर्गों द्वारा लाया जायगा जिनका उसमें हित है, और वे ऐसा तब तक नहीं कर सकेंगे जब तक कि उन्हें अपने वर्ग की माँगों के